फ़िजूल का फतिंगा
फ़िजूल का फतिंगा
प्रेम शब्द अब कैद हुआ,
भाषा की तहखानों में।
तनहाई में विचर रहे हम,
उलझन को सुलझाने में॥
सिर से पाँव डुबो के रखा,
धन के उस खजाने में।
जो मिल के पास रहा नहीं,
कभी किसी जमाने में॥
बड़ी देर लगा दी हमने,
खुद को असल बताने में।
उम्र बिता दी सारी,
फ़िजूल पता लगाने में॥
'अविरल' तू भी मस्त रहा,
स्वप्न सुमन खिलाने में।
वक्त ने ऐसा करवट बदला,
देर न लगी मुरझाने में॥
✍️अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)
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