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लैंडस्केप

बेसिक के लैंडस्केप में अनेक रंग हैं। एक रंग मटमैला है ,जो उनका है जो शहरों से दूर किसी गाँव, मजरे की घुमावदार पगडंडियों की भूलभुलैया के रहस्य से पर्दा उठाते हुए अल - सुबह किसी विद्यालय भवन की चाहरदिवारी में घुसकर बच्चों के धूमिल चेहरों के बीच विलीन हो जाते हैं और दूसरा सुर्ख चटक रंग उनका है जो दिनभर शाखा मृग की भाँति इधर- उधर कुलाँचे भरते हुए इन पगडंडियों से दूर रहने का दिन रात यत्न करते हैं। ऐसा ही एक यथार्थ चित्रण यहाँ प्रस्तुत है। 


     लैंडस्केप
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कहने वाले लाख मिलें, 
करने वाला कोई नहीं, 
दिनरात कर्म में लगे हुए, 
उनकी सुनता कोई नहीं। 


लेखाजोखा करें काम का, 
ये झूठी शान बढ़ाने को , 
मर जाएगी नानी इनकी, 
कोई कह दे पाठ पढ़ाने को। 


ये ठेकेदार बने फिरते हैं, 
दुनिया का दर्द मिटाने को, 
कोई समस्या इनसे पूछो, 
नियम लगें बताने को। 



बने शहंशाह दिनभर घूमें, 
जो सच्चाई से पर्दा हट जा , 
जी - जी करते जिह्वा काँपे, 
लग जाएं  होश ठिकाने को।  


               

✍ रचनाकार :
प्रदीप तेवतिया
वि0ख0 - सिम्भावली,
जनपद - हापुड़
सम्पर्क : 8859850623

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