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मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ

llमैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँll

दुआ तू करना मेरी खातिर 
मैं बेटी हूं मैं पढ़ जाऊं
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊं 
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं बेटी हूं मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊं 

 है मंजिल दूर फिर भी तुम
दिल से बस दुआ करना
जब भी मुश्किले आये
अंधेरा हो निराशा का
मेरे न हौसले कम हो
न मेरी आँख ही नम हो
मंजिले पार कर पाऊं
मुकामो को भी पा जाऊँ
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
मैं आगे और बढ़ जाऊँ

दुआ तू करना मेरी खातिर
 मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
 मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ

मैं चलती हूं मैं बढ़ती हूं 
बिना पंखो के उड़ती हूँ
सहारे की न है दरकार
हम है तो है ये सरकार
कांपते हैं धरा अंबर 
न अब है दिल मे कोई डर
मैं पढ़ जाऊं तो  पढ़ जाए 
तेरा भी घर मेरा भी घर
तेरा भी घर मेरा भी घर
 सबला भी मैं बन जाऊं
 अबला भी न कहलाऊँ
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
........मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
मैं आगे और बढ़ जाऊँ

दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ

जीत जाएंगे हर बाज़ी
खुदा भी अब तो है राजी
सपने तोड़ न मेरे
टूटने दे तू ये घेरे
न अब पर्दे में रहना है
मुझे हर काम करना है
मुश्किल होंगी सारी पार
मिले जो बेटियों को प्यार
साथ तेरा अगर पाऊँ
मैं आगे और बढ़ जाऊँ
मैं आगे और बढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं बेटी हूँ मैं पढ़ जाऊँ
दुआ तू करना मेरी खातिर
मैं आगे और बढ़ जाऊँ

✍   लेखक
     अनुराग कुमार मिश्र
      प्रधानाध्यापक
      प्रा0वि0 मुबारकपुर
      खैराबाद, सीतापुर

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