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स्वाभिमान

कभी-कभी छोटी-छोटी बातें इतना बड़ा प्रभाव डालती हैं कि मन में बहुत गहरे से बैठ जाती हैं। ऐसी ही एक छोटी सी घटना अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर रही हूँ........

       स्वाभिमान
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आज एक छोटे से बच्चे को देखा
हाथ में झंडा लिया
गलियों में दौड़ रहा था
अरे, ये क्या
ठोकर लगी और गिर गया
देर तक आवाज नही आयी
तो, सोचा देख लूँ ,
कि क्या हुआ...
जब देखा तो, 
जमीन पर पड़ा था
पर, झंडा उसके हाथ में ऊपर ही था
ये रोजी रोटी की बात थी
या, फिर झंडे के प्रति सम्मान ?
मेरा मन नही माना
दौड़ कर उसके पास गयी
तो देखा, उसको चोट लगी थी।
खून बह रहा था...
मैंने कहा, ये झंडे मुझे दे दो
और तुम खड़े हो जाओ
वो बोला, नही...
मैं अपने आपसे खड़ा हो जाऊँगा
बस, आप झंडे खरीद लो।
मैंने पूँछा, कैसे दिए ?
बोला, पाँच के दो और दस के चार।
मैंने कहा सारे मुझे दे दो।
उसने कहा, नही.....
जितनी जरूरत हो ,
बस उतने ही ले लो।
मैं आगे बेच लूँगा।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी 
उसे निहारती रही।
उसने कहा, 
आप कहाँ खो गयी।
कृपया, आपको जितने झंडे चाहिए
उतने ले लो।
मुझे आगे भी जाना है
ये झंडे बेचकर 
माँ की दवाएं 
और घर का राशन भी लाना है।
मैंने चार झंडे लेकर,
उसे पैसे दिए 
साथ ही दो चॉकलेट भी।
वह मुस्कुराकर,
 धन्यवाद कहकर,
आगे बढ़ गया,
मुझे बहुत बड़ी सीख देकर।
झंडे ले लो
दस के दो और पांच के चार
वह फिर चिल्लाने लगा।

कभी-कभी एक छोटे से बच्चे से 
बड़ी सीख मिल जाती है।
कहने को तो,
एक छोटी सी घटना होती है।
पर जीवन को
 बहुत बड़ी शिक्षा दे जाती है ।
धन्य है ऐसी माँ ,
जो गरीबी में भी,
अपने बच्चे को,
स्वाभिमानी बना देती है....
स्वाभिमानी बना देती है ....

✍️ डॉ.नीरज अग्निहोत्री
 प्राथमिक विद्यालय उमरना
सरसौल, कानपुर नगर

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