ग़ज़ल
शहर आकर ये बात जानी है
ज़िन्दगी गाँव की सुहानी है
बूँद हूँ ओस की मगर मुझसे
क्यूँ समन्दर ने हार मानी है
इक समंदर से मिल के खो जाना
हर नदी की यही कहानी है
राहे उल्फ़त से तुम नहीं डिगना
इक यही अम्न की निशानी है
दर्द ने लम्स से कहा यारा
चोट दिल पर बहुत पुरानी है
इश्क़ सीरत से तुम करो पाठक
रंग फ़ानी है रूप फ़ानी है
Nice gajal sir ji
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