Breaking News

भटका हूँ मैं

बस ता उम्र भटका हूँ मैं, 
न जाने कहाँ अटका हूँ मैं, 
जबसे बना हूँ एबीआरसी, 
कितनी आँखों में खटका हूँ मैं। 


मुझ पर हैं ये आरोप संगीन, 
स्कूल जाकर न फटका हूँ मैं, 
देखा है मुझे उस हिकारत से, 
मानो बस रुपये सटका हूँ मैं । 


अब यही है इच्छा मेरी, 
बने मित्र मेरे जो थे बैरी, 
लौटूँ न यहाँ, आँखें फेरूं, 
जाउँ स्कूल लगाँऊ न देरी।  
       
✍ रचनाकार :
     प्रदीप तेवतिया
     हिन्दी सहसमन्वयक
     वि0ख0 - सिम्भावली,
     जनपद - हापुड़
     सम्पर्क : 8859850623

कोई टिप्पणी नहीं