भटका हूँ मैं
बस ता उम्र भटका हूँ मैं,
न जाने कहाँ अटका हूँ मैं,
जबसे बना हूँ एबीआरसी,
कितनी आँखों में खटका हूँ मैं।
मुझ पर हैं ये आरोप संगीन,
स्कूल जाकर न फटका हूँ मैं,
देखा है मुझे उस हिकारत से,
मानो बस रुपये सटका हूँ मैं ।
अब यही है इच्छा मेरी,
बने मित्र मेरे जो थे बैरी,
लौटूँ न यहाँ, आँखें फेरूं,
जाउँ स्कूल लगाँऊ न देरी।
✍ रचनाकार :
प्रदीप तेवतिया
हिन्दी सहसमन्वयक
वि0ख0 - सिम्भावली,
जनपद - हापुड़
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