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सकारात्मक जीवन

 सुखं च दुःखं च भवाभवौ च
           लाभालाभौ मरणं जीवितं च। 
पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति 
           तस्माद् धीरो न हृष्येत्र शोचेत ।।

उक्त श्लोक को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत है मेरी नयी कविता.....

       *सकारात्मक जीवन*
        ***************

'सुख दुःख' तो हर प्राणी के,
जीवन मे आते रहते है ।

इनसे डरकर जीने वाले,
बस रोते ही रहते हैं।।

जीवन का कटु सत्य यही है,
इसको जो अपना लेता है।

जीवन सरल सुगम्य बनाकर,
जीवन को 'जीता' जाता है ।

अपने दुःख को सुख में वो
परिवर्तित करते रहते हैं ।

इनसे डर कर जीने वाले
बस रोते ही रहते हैं ।।

दुःख का सुख में परिवर्तन कर,
हल उसका ढूंढा करते।

दुनियां में हल सबका है,
क्यों नही, ये सोचा करते ?

सफल वही जो हर गम का हल,
जग में ढूँढते रहते हैं।।

इनसे डर कर जीने वाले,
बस रोते ही रहते हैं ।।

हर खुश चेहरे के पीछे,
गम की छाया छिपी हुई।

कोई भी तो पूर्ण नही है,
ये सच्चाई छिपी हुई।

रोकर अपने जीवन को क्यों,
नर्क बनाया करते हैं।।

इनसे डर कर जीने वाले,
बस रोते ही रहते हैं ।।

 बन्धु किसी के पास नहीं तो, 
 किसी के पास है रोगी काया।

सन्तति का अभाव कही है,
कहीं रूप और कहीं न माया।

सन्तति हो, तो करे  तिरस्कृत,
कोई दुःख, बने रहते हैं ।

इनसे डर कर जीने वाले,
बस रोते ही रहते हैं ।।

समझाना तो बहुत सरल है,
मगर निभाना जरा कठिन ।

जीवन जो हमको ये मिला है,
है मेरे कर्मों का प्रतिफल ।

ग्रंथ, पुराण, वेद, पावन जन,
 यही बताते रहते हैं ।।

इनसे डर कर जीने वाले,
बस रोते ही रहते हैं ।।

निष्कर्षतः मान लें हम सब,
जीवन को सुखमय बना लें।

'स्वहित सह परहित' अपनाकर,
सकारात्मक इसे बनालें।

'सर्वसुलभ सुख' हो जाते,
जब हम मस्ती में रहते हैं।

इनसे डरकर जीने वाले 
बस रोते ही रहते हैं ।।

 ✍️ डॉ.नीरज अग्निहोत्री
 प्राथमिक विद्यालय उमरना
सरसौल, कानपुर नगर

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