सौहार्द
व्यष्टि नहीं समष्टि की,
आओ मिलकर बात करें।
ऊपर से क्यों बाट निहारें,
आओ हम ही शुरूआत करें॥
वह जीवन ही बस जीवन है,
जिसमें हर पल आस हो।
हम सुधरें तो जग सुधरे,
मूल में यह विश्वास हो॥
अंतर हो विष मैल रहित,
मलिन भाव को रेचेंगे।
जमीन बिके तो बिक जाए,
जमीर नहीं हम बेचेंगे॥
विकल्प रहित संकल्प हमारा,
होंगे हम नवयुग निर्माता।
सौहार्द में हो मन मुदित हमारा,
उन्नत होंगी भारत माता॥
✍️अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
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