जागो रे
यत्र नार्यस्तु पूजन्ते, रमन्ते तत्र देवता.... .....
नारी तुम श्रद्धा हो, तुम सुमन.... ऐसे अनगिनत उपमानों से अभी कुछ दिन पूर्व महिला दिवस पर महिलाओं को सम्मानित किया गया था! पर.............................. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात!!!!
चन्द दिन क्या बीते ये सारी उपमाएँ, मान्यताएँ,परिभाषाएं धूमिल सी हो गयी थी आज!!!!
संध्या काल 6:30 का पहर, शहर का सबसे प्रसिद्ध मार्केट, अच्छी खासी रौनक ! भीड़-भाड़ वाला इलाका! लोगों की आवाजाही, वाहनों का शोरगुल विविधता लिए हुए था! तभी अचानक एक कार क्षत-विक्षत किशोरी को फेंक निकल गया!
लोग तमाशबीन बन कर आए और चलते बने मानो जरा देर ठहर गए तो उनका पाक़- साफ चरित्र दागदार न हो जाए!
उन सफ़ेदपोश मुखौटेधारियों के मुखौटे के भीतर की कालिख मुखौटे को खरोंच कर बाहर झाँक रही थी!
झूठा दंभ भरते उन लोगों के चारित्रिक सौन्दर्य झलक उठे थे आज!
कयासो का बाजार गर्म था। फुसफुसाहट एक बेगानापन लिए होती रही!
जिन्दा लाश सी पड़ी थी एक और निर्भया! ज़िंदगी और मौत से जूझती हुई ........उसकी करूण चीत्कार किसी के भी हृदय को शूल की भाँति चुभ सकती थी लेकिन नहीं.....
यहाँ शायद ऐसा कोई संवेदनशील ही नहीं था जिसका हृदय द्रवित हो सके!
नारी तुम श्रद्धा हो, तुम सुमन.... ऐसे अनगिनत उपमानों से अभी कुछ दिन पूर्व महिला दिवस पर महिलाओं को सम्मानित किया गया था! पर.............................. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात!!!!
चन्द दिन क्या बीते ये सारी उपमाएँ, मान्यताएँ,परिभाषाएं धूमिल सी हो गयी थी आज!!!!
संध्या काल 6:30 का पहर, शहर का सबसे प्रसिद्ध मार्केट, अच्छी खासी रौनक ! भीड़-भाड़ वाला इलाका! लोगों की आवाजाही, वाहनों का शोरगुल विविधता लिए हुए था! तभी अचानक एक कार क्षत-विक्षत किशोरी को फेंक निकल गया!
लोग तमाशबीन बन कर आए और चलते बने मानो जरा देर ठहर गए तो उनका पाक़- साफ चरित्र दागदार न हो जाए!
उन सफ़ेदपोश मुखौटेधारियों के मुखौटे के भीतर की कालिख मुखौटे को खरोंच कर बाहर झाँक रही थी!
झूठा दंभ भरते उन लोगों के चारित्रिक सौन्दर्य झलक उठे थे आज!
कयासो का बाजार गर्म था। फुसफुसाहट एक बेगानापन लिए होती रही!
जिन्दा लाश सी पड़ी थी एक और निर्भया! ज़िंदगी और मौत से जूझती हुई ........उसकी करूण चीत्कार किसी के भी हृदय को शूल की भाँति चुभ सकती थी लेकिन नहीं.....
यहाँ शायद ऐसा कोई संवेदनशील ही नहीं था जिसका हृदय द्रवित हो सके!
रौंदी गयी थी लाज आज हैवानों की हैवानियत से और इंसानियत तो किसी पास थी ही नहीं !!!!#
कृष्ण सरीखा भाई, जनक समान पिता और सुदामा समान मित्र किवदंती मात्र लग रहे थे इस कलयुग में,या लुप्त हो चुके थे।
शायद .......
संवेदनशून्यता इतनी गहरी जड़ पकड़ चुकी थी कि चेतना लाना एक बड़ी चुनौती प्रतीत हो रहा था! खैर.... .....तुच्छ लोगों से सज्जनता की आशा ही क्यों रखना!
घिन आने लगी थी लोगों पर मुझे!
हैरत हो रहा था ये सोचकर कि ये वही लोग हैं जो सरकार की, पुलिस प्रशासन की यत्र -तत्र आलोचना करते, उन पर कटाक्ष करते नहीं अघाते परन्तु आज................... जब उन्हें अपने कर्तव्यों का, अपनी जिम्मेवारियों का परिचय देना था तो... ठूँठ से हो गए थे लोग!!!!
काठ मार गया उनकी सोच के, ओज को और सहृदयता को!
कृष्ण सरीखा भाई, जनक समान पिता और सुदामा समान मित्र किवदंती मात्र लग रहे थे इस कलयुग में,या लुप्त हो चुके थे।
शायद .......
संवेदनशून्यता इतनी गहरी जड़ पकड़ चुकी थी कि चेतना लाना एक बड़ी चुनौती प्रतीत हो रहा था! खैर.... .....तुच्छ लोगों से सज्जनता की आशा ही क्यों रखना!
घिन आने लगी थी लोगों पर मुझे!
हैरत हो रहा था ये सोचकर कि ये वही लोग हैं जो सरकार की, पुलिस प्रशासन की यत्र -तत्र आलोचना करते, उन पर कटाक्ष करते नहीं अघाते परन्तु आज................... जब उन्हें अपने कर्तव्यों का, अपनी जिम्मेवारियों का परिचय देना था तो... ठूँठ से हो गए थे लोग!!!!
काठ मार गया उनकी सोच के, ओज को और सहृदयता को!
सच...
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
कई घंटे गुज़र चुके थे संघर्ष करते दर्द से, छटपटाहट से , लोगों के व्यंग्य वाणों को झेलते किन्तु.............
हाय की मानवता! तू कहाँ दफ़न हो गयी आज!!!!
आखिर इतनी भावशून्यता क्यों, इतनी निष्क्रियता क्यों ???
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
कई घंटे गुज़र चुके थे संघर्ष करते दर्द से, छटपटाहट से , लोगों के व्यंग्य वाणों को झेलते किन्तु.............
हाय की मानवता! तू कहाँ दफ़न हो गयी आज!!!!
आखिर इतनी भावशून्यता क्यों, इतनी निष्क्रियता क्यों ???
ऐसे परिवेश में पल- बढ़ कर लोग अगर आने वाली पीढि़यों से संस्कार की, नैतिकता की, सदाचार की उम्मीद करेंगें तो यह खुद को महज फुसलाना या बरगलाना ही साबित होगा |
क्या फ़ायदा ऐसे डिजीटलकृत युग का,वैश्वीकृत समाज जिसमें लोग एक पीड़िता की सहायता न कर सकें!
ज़नाजे पर तो बहुताधिक लोग आँसू बहाते मिल जाते हैं, लेकिन एक जिन्दा लाश जिसमें अभी थोड़ी जान बाकी थी, उसकी खैर-खबर लेने वाला कोई न था!!
मन -मस्तिष्क में अनेकानेक प्रश्न कौंध रहे थे.......
जब तक खुद पर न गुज़रे या अपनों पर न गुज़रे तब तक किसी की पीड़ा , किसी की तड़प की अनुभूति लोग नहीं कर सकते क्या?????
लोगों की रगो में दौड़ने वाले खून की लालिमा स्याह पड़ गयी है क्या?
आज आए दिन एसिडअटैक मज़नूगिरी ,छींटाकशीं, रेप..... न जाने कितनी वारदातें लोगों के सामने ही घट जाती हैं और लोग..... मौन होकर वहीं खड़े रहते हैं, उनका विरोध करने की बजाय अपराधीकरण का शिकार हुई पीड़िता पर ही तानाकशी करते मिल जाते हैं , महिलाओं की पेशाकों पर खूब टीका-टिप्पणी करते हैं पर यही विचार,यही नजरिया अपनी माँ, बेटी या बहन के लिए भी रखते हैं क्या?
बिल्कुल नहीं!!
क्या ये उन संभ्रात लोगों की कलुष मानसिकता नहीं उजागर करता!
क्या मर्यादा को पहनावे से आँका जाना उचित है? फिर शालीनता इसकी शिकार कैसे हो जाती है?
और...... जो कोई ऐसा नहीं करते वे इन्तेज़ार करते रहते हैं न जाने किसका.............
अलार्म अभी बजा नहीं, इंसान अभी मरा नहीं, अलार्म को बजने दो...........................
क्या सच! लोग इसकी ही प्रतीक्षा करते हैं!
लानत है ऐसे लोगों की मानसिकता पर, उनके पुरुषत्व पर, शख्सियत पर!
अगर एक ईमानदार, जागरूक नागरिक के रूप में हर गली-मुहल्ले, चौराहे, मार्केट के लोग अपनी भूमिका निभाएँ बिना प्रशासन से कोई अपेक्षा किए तो शायद.......... ये वारदातें हो ही न क्योंकि अपराधी या एेसी वारदातों को अंजाम देने वाले गिनी -चुनी संख्या में ही होते हैं जबकि आम आदमी या जनता असंख्य हैं!
फिर क्यों.... दिशाहीन, मिथ्यापूर्ण जीवनशैली जी रहे हैं लोग?
बहुत हो चुका अब मौन होकर अपराध को होते हुए देखते रहना|
अब और नहीं!!!!!!!
क्या फ़ायदा ऐसे डिजीटलकृत युग का,वैश्वीकृत समाज जिसमें लोग एक पीड़िता की सहायता न कर सकें!
ज़नाजे पर तो बहुताधिक लोग आँसू बहाते मिल जाते हैं, लेकिन एक जिन्दा लाश जिसमें अभी थोड़ी जान बाकी थी, उसकी खैर-खबर लेने वाला कोई न था!!
मन -मस्तिष्क में अनेकानेक प्रश्न कौंध रहे थे.......
जब तक खुद पर न गुज़रे या अपनों पर न गुज़रे तब तक किसी की पीड़ा , किसी की तड़प की अनुभूति लोग नहीं कर सकते क्या?????
लोगों की रगो में दौड़ने वाले खून की लालिमा स्याह पड़ गयी है क्या?
आज आए दिन एसिडअटैक मज़नूगिरी ,छींटाकशीं, रेप..... न जाने कितनी वारदातें लोगों के सामने ही घट जाती हैं और लोग..... मौन होकर वहीं खड़े रहते हैं, उनका विरोध करने की बजाय अपराधीकरण का शिकार हुई पीड़िता पर ही तानाकशी करते मिल जाते हैं , महिलाओं की पेशाकों पर खूब टीका-टिप्पणी करते हैं पर यही विचार,यही नजरिया अपनी माँ, बेटी या बहन के लिए भी रखते हैं क्या?
बिल्कुल नहीं!!
क्या ये उन संभ्रात लोगों की कलुष मानसिकता नहीं उजागर करता!
क्या मर्यादा को पहनावे से आँका जाना उचित है? फिर शालीनता इसकी शिकार कैसे हो जाती है?
और...... जो कोई ऐसा नहीं करते वे इन्तेज़ार करते रहते हैं न जाने किसका.............
अलार्म अभी बजा नहीं, इंसान अभी मरा नहीं, अलार्म को बजने दो...........................
क्या सच! लोग इसकी ही प्रतीक्षा करते हैं!
लानत है ऐसे लोगों की मानसिकता पर, उनके पुरुषत्व पर, शख्सियत पर!
अगर एक ईमानदार, जागरूक नागरिक के रूप में हर गली-मुहल्ले, चौराहे, मार्केट के लोग अपनी भूमिका निभाएँ बिना प्रशासन से कोई अपेक्षा किए तो शायद.......... ये वारदातें हो ही न क्योंकि अपराधी या एेसी वारदातों को अंजाम देने वाले गिनी -चुनी संख्या में ही होते हैं जबकि आम आदमी या जनता असंख्य हैं!
फिर क्यों.... दिशाहीन, मिथ्यापूर्ण जीवनशैली जी रहे हैं लोग?
बहुत हो चुका अब मौन होकर अपराध को होते हुए देखते रहना|
अब और नहीं!!!!!!!
लोगों को अपनी क्षमता को पहचानना होगा! परिष्कृत करना होगा अपने विचारों को, बदलनी होगी अपनी ओछी मानसिकता!
और अग्रसर होना होगा एक अनूठा पहल की ओर!
सरकार तल्लीनता से जुट चुकी है इन अपराधों को रोकने के लिए| नये -नये एक्ट,नये -नये कानून बन रहे हैं |अनगिनत हेल्प लाइन जारी की जा चुकी हैं इसलिए लोगों को भी सरकार के साथ काँधे से काँधा मिलाकर, सहयोगपूर्ण रवैया अपनाना होगा क्योंकि जहाँ तक आम आदमी की पैठ है वहाँ तक सरकार की पहुँच हो जरूरी नहीं | तब कहीं जाकर स्वस्थ एवं सुन्दर समाज की कल्पना की जा सकती है||
तब कहीं जाकर हम गर्व से कह सकेंगे......
देह नहीं दुनिया है नारी!
नारी तुम गुंजन का आधार
यह जानकर अचम्भित रह गयी मैं कि एक 7 वर्ष का बच्चा जब वहाँ से गुज़रा तो वह ठहर गया वह| उसने अपनी फटी निक्कर को टटोला शायद.....
सिक्का था ,निकाला और पास के
P.C.O पर 100 नम्बर डायल कर पुलिस को घटना की जानकारी दी ,जिस तरह वह दे सकता था! पुलिस आयी और पीड़िता को चिकित्सकीय सहायतार्थ ले गयी |
जो काम बड़े लोगों को करना चाहिए था वह इस छोटे से मासूम ने कर दिखाया जिसने अभी #ककहरा#
पढ़ना भी भली-भाँति नहीं सीखा होगा शायद!!!!
सलाम उसे जिसने उस मासूम को मानवीयता की भावना से सँवारा ,कर्तव्य की भावना भरा!
बच्चा वहाँ से चला गया और पीछे छोड़ गया अनगिनत सवाल!!!!
कहते हैं कि वेद पढ़ना सरल है पर.. वेदना पढ़ना कठिन
उस बच्चे ने शायद ..."वेदना "पढ़ ली थी!!!!
कब तक लोग सुप्तावस्था में रहेंगे अब तो कोई जागो !!!!
जागो रे
और अग्रसर होना होगा एक अनूठा पहल की ओर!
सरकार तल्लीनता से जुट चुकी है इन अपराधों को रोकने के लिए| नये -नये एक्ट,नये -नये कानून बन रहे हैं |अनगिनत हेल्प लाइन जारी की जा चुकी हैं इसलिए लोगों को भी सरकार के साथ काँधे से काँधा मिलाकर, सहयोगपूर्ण रवैया अपनाना होगा क्योंकि जहाँ तक आम आदमी की पैठ है वहाँ तक सरकार की पहुँच हो जरूरी नहीं | तब कहीं जाकर स्वस्थ एवं सुन्दर समाज की कल्पना की जा सकती है||
तब कहीं जाकर हम गर्व से कह सकेंगे......
देह नहीं दुनिया है नारी!
नारी तुम गुंजन का आधार
यह जानकर अचम्भित रह गयी मैं कि एक 7 वर्ष का बच्चा जब वहाँ से गुज़रा तो वह ठहर गया वह| उसने अपनी फटी निक्कर को टटोला शायद.....
सिक्का था ,निकाला और पास के
P.C.O पर 100 नम्बर डायल कर पुलिस को घटना की जानकारी दी ,जिस तरह वह दे सकता था! पुलिस आयी और पीड़िता को चिकित्सकीय सहायतार्थ ले गयी |
जो काम बड़े लोगों को करना चाहिए था वह इस छोटे से मासूम ने कर दिखाया जिसने अभी #ककहरा#
पढ़ना भी भली-भाँति नहीं सीखा होगा शायद!!!!
सलाम उसे जिसने उस मासूम को मानवीयता की भावना से सँवारा ,कर्तव्य की भावना भरा!
बच्चा वहाँ से चला गया और पीछे छोड़ गया अनगिनत सवाल!!!!
कहते हैं कि वेद पढ़ना सरल है पर.. वेदना पढ़ना कठिन
उस बच्चे ने शायद ..."वेदना "पढ़ ली थी!!!!
कब तक लोग सुप्तावस्था में रहेंगे अब तो कोई जागो !!!!
जागो रे
लेखिका
सारिका रस्तोगी,
सहायक अध्यापिका ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय,
फुलवरिया, जंगल कौड़िया,
गोरखपुर!!
सहायक अध्यापिका ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय,
फुलवरिया, जंगल कौड़िया,
गोरखपुर!!
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