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बेटी के ब्याह का सवाल

( दहेज के दानवो से आहत एक पिता की करुण पुकार जो धिक्कारता है, समाज और अपनी गरीबी को बार- बार )
 
  "बेटी के ब्याह का सवाल"
  कुछ हैं मेरे ऐसे हालात
  सिर्फ अकेले ही थोड़ी सी
मेरी अनियमित कमाई
ऊपर से बढ़ती जा रही हैं
यह जानलेवा महँगाई
दहेज की माँगों का
कैसे कर पाऊँगा मैं भरपाई
लौट चुका हूँ !!
अब तक कई दरवाजो से ये सुनकर..
    
    क्या !!
दोगे नगद गाड़ी
तभी बन पायेगी बेटी तुम्हारी
बहु हमारी .....
जहाँ गया यही पाया
जहाँ होगी धन की माया
वही मिल पायेगी , बेटी को
सुख की छाया ।

       क्यों ??
दे रहा है ये समाज
बेटियों को मौत का उपहार
भले ही हो वो कितनी गुणवान
फिर भी सह रही हैं
दहेज का ' प्रहार'
या तो खुद 'ख़ुदकुशी' करनी पड़ती हैं
या तो....
दहेज़ के भेड़िये कर दे रहे है
खुद उनका 'अन्तिम संस्कार'

       क्या कहूँ??
कितना कठोर हृदय हो गया है
हर इंसान का आज
दूसरों की बेटियों में
क्यों .....
नही दिखाई देती अपनी बेटी!!
चन्द रुपयों के लिए
क्यों ....
बन जाता है  इंसान 'हैवान '
अफ़सोस करूँ- तो किस पे करूँ
अपनी गरीबी का
या फिर....
समाज की बनायी हुई
लालच की इच्छाओं का !!
    
क्या कहूँ ??
कौन सुनेगा इस गरीब
पिता की व्यथा !
कौन ब्याहेगा!!
बिन दहेज मेरी बेटी?
    "" बेटी के ब्याह का सवाल है
       घर में बैठी जवान बेटी
   सोचता हूँ की अपना एक गुर्दा ही बेच दूँ इस बार ...........|
  
रचयिता
दीप्ति राय, स0 अ0
प्राथमिक विद्यालय रायगंज
खोराबार, गोरखपुर
  खोराबार गोरखपुर

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