अलग और विशेष दिखने की चाह (ग़ज़ल)
अलग और विशेष दिखने की चाह (ग़ज़ल)
हर शख़्स को है ख़्वाब अलग ही दिखे,
इस राह में बेहिसाब अलग ही दिखे।
चेहरे पे नक़ाब और बातों में फरेब,
ख़ुद से ही अब जनाब अलग ही दिखे।
फ़िल्टर की तिलिस्म में गुम है असलियत,
आईनों में हिसाब अलग ही दिखे।
ख़ुद को वो सजाने में उलझा रहा,
पर दिल के ख़्वाब अलग ही दिखे।
मंचों पे जो उभरे, दिखा सबको खास,
मगर भीड़ में जनाब अलग ही दिखे।
असल में तो ख़ूबसूरती होती है सादगी,
जो दिखता है लाजवाब, अलग ही दिखे।
हर मोड़ पे सच से जब सामना हुआ,
आदमी का नक़ाब अलग ही दिखे।
✍️ शायर : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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