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झूठ के मसीहा (गज़ल)

झूठ के मसीहा (गज़ल)


नहीं कोई श्रम किया, बस नाम कमा के दिखा दिया,  
झूठी बातों की चाशनी से, ऊँचा मक़ाम बना दिया।  

घर में न रिश्तों की अहमियत, बाहर हम बने मसीहा,  
अपनी झूठी रहमतों से, सच्चाई को धुंधला बना दिया।  

वादों के जाल बिछाकर, मंचों पर हमने शोर किया,  
भ्रम का ऐसा खेल रचा, हर सच को दाग लगा दिया।  

सेवा के नाम पर लोभ भरा, नेकी का लबादा ओढ़ लिया,  
अंदर स्वार्थ का जहर छुपा, बाहर साधु बना दिया।  

बुजुर्गों को हमने दिया भूला, अपनों से कर्ज मिटा दिया,  
दुनिया के आगे चालाकी से, आदर्श का दीप जला दिया।  

हम वीआईपी और अति वीआईपी, अभिमान हमारा ताज रहा,  
सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ने को, इंसानियत का सिर झुका दिया।  

गाँव-गली में झूठ फैलाया, हर छवि को मखमल बना दिया,  
खुदगर्ज़ी की मीनार पे चढ़कर, कायरता को मान बना दिया।  

मसीहा नहीं, छल के सौदागर, जो खुद के भ्रम में जी रहे,  
सच्चाई को कुचलकर, अपने स्वार्थ का गान गा दिया।


✍️  शायर : प्रवीण त्रिवेदी  "दुनाली फतेहपुरी"

शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।


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