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सूखते तालाब, बुझते एहसास (गज़ल)

सूखते तालाब, बुझते एहसास (गज़ल)



मिला था जीवन का हर एहसास खो गया,  
तालाब सूखते ही वो मधुमास खो गया।  

गूंजते थे मंत्र और भजन हर एक ओर,  
धार्मिक वो सुर, सांस्कृतिक प्रयास खो गया।  

नदी से बह के आता जो जीवन का स्रोत था,  
वो झील, वो तरंगों का विश्वास खो गया।  

जहां पर गांव हँसता था सुबह की ओस संग,  
वो माटी, वो किस्सों का इतिहास खो गया।  

अब ईंट-पत्थरों से भरी है हर इक दिशा,  
वो पेड़, वो परिंदों के निवास खो गया।  

सजाते थे जहां मेले, बहारें भी सजतीं,  
वो हाट, वो उमंगों का प्रकाश खो गया।  

तालाब अब नहीं रहे, समाज भी गुम हुआ,  
मानो अपनी ही पहचान से उल्लास खो गया।  

✍️  शायर : प्रवीण त्रिवेदी  "दुनाली फतेहपुरी"

शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।


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