हीरे का जौहरी
हीरे का जौहरी
कोई न छीन पाएगा पहचान तुम्हारी ,
हीरे को जो पत्थर कहे वो कैसा जौहरी ?
बस काल की गति को समझ तुम मौन साध लो ,
समय होगा तुम्हारा , विजय होगी तुम्हारी ।
जब धार के विपरीत नाव चल ही पड़ी है ,
निश्चय करो, पतवार में जी जान लगा दो ,
किसी और की पहचान बनाने से क्या मिला ?
उठ कर खड़ी हो , अपना अस्तित्व बचाओ ।
चिंतन करो मनन करो ,बदलाव को समझो ,
निर्णय हो सत्य सिद्ध , स्व सम्मान बचाओ ,
जो मन को चुभे दंश दे वो शूल उखाड़ो ,
आगे बढ़ो , बीते समय को आज न लाओ ।
संघर्ष स्वयं से है स्वयं के लिए संघर्ष ......
लड़ कर के विजय ले लो ,ऐसे हार न मानो ,
अंतः करण हो तृप्त ऐसी रागिनी छेड़ो,
मन को करो आह्लादित छोड़ व्यर्थ के आलाप ।
✍️ रचनाकार : प्रसून मिश्रा
जिला बाराबंकी
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