ग़ज़ल
विश्व पर्यावरण दिवस पर एक ग़ज़ल.....
ग़ौर से देखा जो चेहरा नीम का
यूं लगा रूठा है साया नीम का
हो गये हैं वर्चुअल झूले सभी
पड़ गया है रंग पीला नीम का
देखकर कंक्रीट के जंगल यहाँ
काँप जाता है कलेजा नीम का
सब्ज़ कर पाया न क्लोरोफिल उसे
शाख़ से टूटा जो पत्ता नीम का
आबोदाना पूछ ले पँछी अगर
थरथरा उठता है लहजा नीम का
आदमी को चाहिए वैसा करे
बढ़ सके जैसे भी रुतबा नीम का
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पुष्पेंद्र, पुष्प
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