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मां

मां

स्नेहिल ,सुगन्धित,पवन जस ममता मई मेरी मां,
ईश्वर की अद्वितीय संरचना सहन शीलता की प्रतिमूर्ति मेरी मां।
थीं अदम्य साहसी विलक्षण प्रतिभा की धनी मेरी मां,
मां के चरणों में रहा नित खुशियों का खजाना,
संस्कारों की निधि मेरी मां।
मुश्किलों के आगे कभी सीखा नहीं था झुकना,
सबकी इच्छा स्नेह पूर्वक पूरी करती मेरी मां।
जब कभी मैं रुकती,थकती अरु निराश होती,
सम्बल बनती मेरी मां।
वर्ष बीत गए इतने सारे,तुम बिन दुःख झेले बहुतेरे,
फिर भी हौले से थपकी दे जाती मेरी मां।
कैसे कहूं ? इतने निष्ठुर हुए भगवन.....
असमय ही हम अबोधो से छीन लिए मेरी मां ।
दुख विषाद कष्ट ताने सुन सह के भी,
तनहा प्रगति के पथ पर चली , सुन ले 
न दर्द मेरी मां।
बिन आपके जीवन बहुत है दुष्कर,
फिर भी आपके साहस से जीती हूं मैं मां।
थकती हूं , रोती हूं , गुनती हूं आस में ,
एक बार लौट के आ जाएं मेरी मां।
फूल एक भी न चढ़ाया कभी ,
न लगाई तस्वीर पर माला,
उम्मीद में जीती हुं ,
एक बार लौट आएं मेरी मां।
अश्रु बहते नैनों से , हृदय से उठती नित आह है,
नवासे आपके अंशुमान , राखी संग करती मैं प्रार्थना ,
एक बार लौट आए न मेरी मां।
फिर आंचल में छुपाए न मेरी मां,
पीर उर की घटाएं न मेरी मां।
एक बार लौट के आए न मेरी मां।।

✍️
ममता प्रीति श्रीवास्तव (प्रधानाध्यापक) 
गोरखपुर, उत्तर- प्रदेश।

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