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पुरनकी पेंशन

 पुरनकी पेंशन


मांगी नाही धरती अंबर

ना चाहे कौनो खजाना,

बस चाही हमके पुरानी पेंशन 

इ बा जीयले क बहाना।

चाहे जौनो हो सरकार, 

हम सबके दे दे बस 

पुरानी पेंशन के अधिकार।

नयकी पेंशनवा 

कुछ समझ ना आवे 

मिली कब केतना पाई,

ई मनवा के ना भावे।

अरे बीती ई बुढ़ापा,

कैसे न जानी ।

पेंशनवा खत्म भईल 

खत्म भईल जइसे जवानी। एक-एक दिनवा मेहनतवा

  हम कईली।

 अपने फर्जवा पर,

दिन रात हम लूटौली।

देहीया हमार घिस गइल,

दौर दौर हम चिल्लईली।

जौनन के कुछ ना आवत,

ओहु के पढन सिखइली।

इनाम मिलल हमके 

बुढ़ापा के आईसन,

मोहताज रहब एक-एक पाई के रहेले पानी बिना जीव जैसन।

अब का कहीं हम के,

कुछ ना बुझाला।

घर के कोनो प्राणी,

 हमसे न खुश बा।

 बुढ़ापा में बोझ बनवा,

 बात बात में ईहे ताना देते बा।

खर्चवा हम कैसे निबाहब

बेटवा ईहे रोज रटत बा।

अब कईसे कही अपने,

जियरा के ई बात।

बीवी,लइका और बेटी

बिन पैसा के, 

बुढ़ापा मे काउनो न देई साथ।

बड़ी गरज बा बड़ी अरज बा

 सुन लेत ई सरकार।

ना देत काऊनो और सुविधा 

ना बढ़ावे कोनो भत्ता,

बस लौटा दे हमार पुरान पेंशन। जऊन करी हमार

 बुढ़ापा मेंटन।

बस लौटा दा ए सरकार

 लौटा दा एकगो हमार पुरनकी पेंशन।।

✍️

दीप्ति राय "दीपांजलि"(सहायक अध्यापक)

प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर



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