मातृ दिवस
मातृ दिवस
माँ लिखने में भी सर पे ताज है,
हर किसी को,
अपनी-अपनी माँ पर नाज है।
माँ अपना खून देकर सृजन करती,
फिर हज़ारों मुश्किलें सहकर संभालती है,
और असहनीय दर्द सहकर
दुनिया में लाती है,
खून दिया अब पसीने की बारी है,
न जाने कितने सालोंं तक की तैयारी है।
माँ पहले मॉस की देह को निखारती हैं,
बच्चा बड़ा हो जाए तो भी,
उसके आंसू,सपने,ख़ुशी,
सब कुछ सवारती।
बेटा हो या बेटी,
सबका हिस्सा बराबर का होता हैं,
जब-जब बच्चा रोता हैं,माँ रोती हैं,
माँ को रोता देख
बच्चे का दिल भी रोता है।
वहीं माँ जब सास बन जाती,
बेटी और बहू में फर्क करती नज़र आती।
दामाद अच्छे है कहकर इठलाती है,
बेटा बीवी को खुश रखता सुनकर दुःखी हो जाती,
सारे रिश्तों में अपेक्षाओं की महमारी है,
कहीं बहू सास पे
तो कहीं सास बहू पे भारी है।
फिर भी माँ तो माँ है,
चाहे मेरी माँ हो ,चाहे मेरे पति की माँ।
✍️
नूतन शाही, स० अ०
प्र०वि० बेलवार,खोराबार
गोरखपुर
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