याद आती है मां
याद आती है मां
बहुत याद आती है मां,
तेरी यादें आती है मां।
जब मैं छोटी थी मां ,,,,,
जब मैं छोटी थी ,,
तू मुझसे दूर रहती थी।
तेरी ममता की खातिर
मेरी अखियां तरसती थी।
मजबूरी तेरी और मेरी ,
जीवन की कुछ ऐसी थी।
मैं पढ़ने की खातिर शहर में, हमारी, सुविधाओं की खातिर
तू गांव में रहती थी ।
तेरे ह्रदय में बहुत प्यार था,
तुम स्नेह मुझसे करती थी।
पर मजबूरियों की खातिर,
मेरे संग नहीं रह सकती थी।
दिन बीता,,,,
मैं बड़ी हुई,
हृदय में अनगिनत प्रश्न लिए , ख्वाहिशों को मैं खुद से कहकर, पन्नों पर लिख लेती थी।
हां मां उन क्षणों में,,,
मैं याद तुझे करती थी।
कुछ पल ऐसा आया फिर,
तू गांव से पास मेरे लौट आई,
मैं कुछ पल संग तेरे रही।
वह क्षण अविस्मरणीय रहा,
जिस पल में तू मेरे साथ थी।
क्षणभर में टूटा स्वप्न मेरा
कुछ वासर में ही,,
मैं ससुराल में थी।
ढूंढू जो मैं अपनापन
बनते, गिरते कुछ रिश्तो में
प्यार तेरा अब मिलता नहीं
किसी भी रिश्ते में ।
भरा हुआ घर आंगन कोना
पर ,,,
आहट नहीं कहीं तेरी मां।
जो गर्माहट तेरे हाथों की थी
वो मिलती कहीं नहीं मां।
तेरी ममता तेरा आंचल,
आशीष देती बाहें तेरी
अब नहीं है मां।
तुझसे मैं आकर मिल पाती,
मैं आकर कुछ ,,
अपना कह पाती।
मैं पहुंच चुकी अब बुलंदियों पर, जो तू देखना चाहती थी।
मेरी बुलंदी देखने को,
अब तेरी आंखें नहीं है मां।
ओ मां जब मैं छोटी थी,
तेरे स्नेह को तरसती थी।
संग को तेरे भटकती थी।
तेरी यादें आती है मां,,,,
ओ मां जब मैं छोटी थी।।
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दीप्ति राय "दीपांजलि "
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर
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