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जीवनशाला

जीवनशाला
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रे प्रहरी अंतर्मन के!
हरियाले पथ में एक कील चुभी,
पग ठहर गए पर रुके नहीं,
झँझावातों में मस्तक झुके नहीं,
दूर उजाला दिख सा रहा
जीवन की साँझ तो होगी वहीं
मत देखो ऐसे अचरज भर,
आश्रय तेरा है मेरा भी वहीं ।

तेरी भी है जीवन शाला,
मेरी भी है जीवन शाला।

रे प्रहरी अंतर्मन के!
तेरे प्याले में कुछ बिंदु गिरे,
जलबिंदु लगे मधु बिंदु लगे,
इस हृदय चक्षु के मानस पर
भ्रम सिंधु लगे छलबिंदु लगे।

घोर परिश्रम करके पथिक,
जब कंचन भवन पहुंचता है,
 हीरे मानिक से जड़ा हुआ
वह प्याला नीरस लगता है।

 ना सुरशाला ना देवधरा,
नव रत्न कोई ना कूप भरा,
ना है यह कोई रत्नाकर,

तेरी भी है जीवन शाला
मेरी भी है जीवन शाला।

रे प्रहरी अंतर्मन के!
संग्राम नहीं शुभ यत्न करो,
निर्भय होकर यशवान बनो,
घंटा ध्वनि से गुंजायमान रहो।
जागृत दिनकर की आभा से,
कीर्तिकुटिया को रविवान करो।

ना गिरि ना तरू ना जीव मिला,
पर मिली युगों तक युगशाला,
युग के इस प्रांगण में रमी हुयी,

तेरी भी है जीवन शाला,
मेरी भी है जीवन शाला।।

✍️
स्वरचित-
अलकाखरे
झांसी

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