मन की बात
"मन की बात जो लिख पाती"
मैं हर्षित होकर पथ में लिखती जो
अपने मन की बातें
सस्मित सपने मीठे सारे
अगर मै लिख पाती मन की बातें
मन की सारे अभिलाषा
मिट गये हैं सारे सपने
उनको एक एक करके धो डाली
अपने आंसू के बूदों से
फिर भी बिजली सी कौध जाती
मेरे सपने मीठे सारे
गाता मन का तार तार
प्रेम भरा जीवन गाथा
दुख पीड़ा लेकर चलती जाती
जिस पथ पर तुम जाते हो
यादों के विह्वल मन में
तेरी छवि न धूमिल हो पाए
अब अमिट हो जाएगा
मेरे सीमित सीमा का मेल
देखेगा जग अमिट अमरत्व
मडरायेगी अभिलाषाएं
✍️
पूनम मिश्रा
बड़हलगंज, गोरखपुर
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