बूढ़े माँ-बाप
जिसने हम सबको पाला है, जो हम सबका रखवाला है
आज वही चिंता में डूबा छूटा उसका निवाला है
एक न एक दिन हम भी जलेंगे आग में पश्चाताप की
कैसी हालत कर दी हमने इन बूढ़े माँ-बाप की ।
जिनकी अँगुली पकड़ के हमने कल जो चलना सीखा था
जिनके न होने पर देखो घर भी लगता सूना था
फिर भी वो लचार खड़ा है आस लिए संतान की,
कैसी हालत कर दी हमने इन बूढ़े माँ-बाप की ।
खुद भूखा रहकर के जिसने हमको खूब खिलाया था,
आँखों में आंसू थे फिर भी हमको खूब हंसाया था,
आज वही सब चोट सह रहा बच्चों के आघात की,
कैसी हालत कर दी हमने इन बूढ़े माँ-बाप की ।
नौ माह जिसने कष्ट सहे पर कभी नहीं कुछ बोली थी,
हमको खिलाकर बाद में खाती माँ भी कितनी भोली थी,
आज वो हम पर बोझ बन गयी और पड़ी हुयी है लाश सी,
कैसी हालत कर दी हमने इन बूढ़े माँ-बाप की ।
आओ थोड़ी बात करें अब पिता के स्वाभिमान की,
जीवन भर जो लड़ा लड़ाई घर के निज सम्मान की,
आज वही अब घूंट पी रहा अपने ही अपमान की,
कैसी हालत कर दी हमने इन बूढ़े माँ-बाप की ।
✍ रचियता
सन्तोष कुमार गौड़ (स०अ०)
राजकीय हाई स्कूल, उदई सरांय,
भिटौरा, फतेहपुर
रचनाकार का संक्षिप्त परिचय..
कक्षा 11 से कवितायेँ लिखना प्रारम्भ किया और मेरी रूचि रही देश, माँ-बाप, और सामाजिक परिवेश को ही अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाऊं।
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