हम्द (ईश वन्दना)
जिसने साँसें की अता, तू ही है या रब
लायके हम्दो सना , तू ही है या रब
जिसने दुनिया को रचा, तू ही है या रब
जिसने हम सब को गढ़ा, तू ही है या रब
माँ के झुर्रीदार चेहरे के बगल से
नूर बनकर झाँकता, तू ही है या रब
ज़ुल्म सहकर जो नहीं कुछ बोल पाते
उनकी चुप्पी की सदा, तू ही है या रब
अपने बच्चों की ख़ुशी को देख करके
माँ जो पढ़ती है दुआ, तू ही है या रब
सूर का प्यारा किशन तुलसी का है राम
सत्य चारों धाम का, तू ही है या रब
रूह बनकर रहबरी करता जो सबकी
सबके अन्तर्मन बसा, तू ही है या रब
वेद मन्त्रों की ऋचाओं में बसा तू
इस जगत की आत्मा, तू ही है या रब
तू है कबिरा की परमसत्ता का नायक
नूर इस कौनैन का , तू ही है या रब
हर क़दम धोखा दिया दुनिया ने 'पाठक'
मेरा सच्चा आसरा, तू ही है या रब
✍ ज्ञानेन्द्र 'पाठक'
स0अ0
प्रा वि ग्वालियर ग्रण्ट
रेहराबाज़ार, बलरामपुर
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