पथ का साथी बन जाऊँगा
पग थक जाएं चलते-चलते
पथ लगे काटना मुश्किल सा
उस पल मुझको बतला देना
पथ का साथी बन जाऊँगा।
किंचित सा भी आभास जो हो
पल भर को भी विश्वास जो हो
सब सुलभ नहीं कर सकता तो क्या
तुम संग मैं चलता जाऊँगा
पथ का साथी बन जाऊँगा।
मैं हँसकर साथ निभाऊंगा
काँटों पर भी चलता जाऊँगा
हो संदेह तुम्हारे मन में यदि
अनुराग वहाँ भर जाऊँगा
वह पथ मैं सरल बनाऊंगा
पथ का साथी बन जाऊँगा।
नीरस,नीरव हो जाए सफर
अँधकार दिखे जब चारों पहर
दिखता न कहीं सबेरा हो
कुंठा ने केवल घेरा हो
बस अभिलाषा कर लेना मेरी
मैं वहीं खड़ा मिल जाऊँगा
पथ का साथी बन जाऊँगा।
भीषणता रवि दिखलाएगा
मैं अविरल जलधारा बन जाऊँगा
तप्त हृदय को शीतलता से
सराबोर मैं कर जाऊँगा
एकांत में न घबरा जाना
मैं तुमको राह दिखाऊंगा
पथ का साथी बन जाऊँगा।
भूले जो तुम मंजिल पाना
कहीं भटक गए किसी बियाबाँ में
उलझन जो बढ़े कि जाएं कहाँ
उस पल में वहाँ आ जाऊँगा
विपदा में साथ निभाऊंगा
पथ का साथी बन जाऊँगा।
लेखिका :
✍ अलका खरे
प्र0अ0
कन्या प्राथमिक विद्यालय रेव,
ब्लॉक मोठ
जनपद झांसी
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