एक सफल स्त्री
कभी-कभी सोचती हूँ
क्या है एक सफल स्त्री की परिभाषा
जो रोज़ काम पर जाती है
जो नित नयी उपलब्धियां पाती है
या वो जो घर और बाहर दोनों सम्हालती है
काम के साथ बच्चों और परिवार का तारतम्य बैठाती है
वो जो आत्मनिर्भर कहलाती है
या वो जो एक पुरुष के समान स्वतंत्र होती है
अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए
पैसों को मनचाहा खर्च करने के लिए
समाज तालियां बजाता है
स्त्री की सफलताएं गिनाता है
आदर्श बताता है
महिलाओं का दौर बताता है
स्त्री-पुरुष समानता कहता है
पर क्या कोई उस सफल स्त्री के मन की बात भांप पाता है?
कि उसने उन उपलब्धियों के लिए क्या-क्या छोड़ा है?
घर पर रोते बच्चे को मनुहार करने का सुख
घर को सजाने-संवारने का सुख
सबकी फरमाइशें पूरी करने का सुख
तपती धूप में घर में रहने का सुख
जाड़े की धूप सेंकने का सुख
दूसरी औरतों की तरह बातें करते स्वेटर बुनने का सुख
आचार पापड़ डालने का सुख
और ना जाने क्या क्या-क्या
वो पसीना पोछती
या ठिठुरती हुई
घर के काम निपटाती हुई
रोज़ निकल जाती
सब कुछ पीछे छोड़कर
बच्चे की बहती नाक
चाय का आधा प्याला
धुले हुए कपड़े
बहुत कुछ
सफल स्त्री बनने के लिए
पर उसके हिस्से के बचे कामों को
कौन सम्हालता है ये किसी ने सोचा है?
तालियां बजाने वाले
नारी सशक्तिकरण का नारा लगाने वाले
तारीफ के पुल बांधने वाले
स्त्री के पीछे उसके बीमार बच्चे को कौन दवा देता होगा
उसके अस्त-व्यस्त घर को कौन सम्हालता होगा
उसके माँ-बाप भाई-बहन सबसे टूट रहे रिश्तों को कौन मजबूती से सम्हालता होगा
दिन ख़राब बीतने पर शाम को कौन हौसला बढ़ाता होगा
नित नए जीवन युद्ध के लिए कौन उसे तैयार करवाता होगा
एक सफल स्त्री ले पीछे होता है एक छिपा चेहरा
उसके जीवन साथी का !
जिसके लिए तालियां नहीं बजतीं!
प्रशंसा नहीं होती!
ये वो कृष्ण होता है जो अपने अर्जुन को तैयार करता है
जीवन युद्ध के लिए
वो होता है जो समाज के नियमों से अलग अपनी स्त्री को जूझना सिखाता है
सफलता और असफलता सबमें साथ देता है
सफल स्त्री के पीछे एक- अवर्णित - अप्रशंसित
जीवन साथी का हाथ होता है!
वो सफल स्त्री की छाया होता है
स्वयं पीछे रहकर उस स्त्री को सफल बनाता
बिना तालियों के
बिना प्रशंसा के
तब कहीं जाकर पूरी होती है
एक सफल स्त्री की परिभाषा!
लेखिका :
✍ पायल सिंह
पी जी टी अर्थशास्त्र
केंद्रीय विद्यालय, बस्ती
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