क्या कहें किससे कहें कैसा हुआ
क्या कहें किससे कहें कैसा हुआ।
ये समझ लो जो हुआ अच्छा हुआ।।
कौन सुन पायेगा अब मेरी सदा।
जब खुदा ही आज वो बहरा हुआ।।
सदा= आवाज
लाख वो इनकार करता है मगर।
अश्क़ में इक अक्स है उभरा हुआ।।
चाँद उतरा है या वो हैं बाम पर ?
आज मेरे दिल को फिर धोखा हुआ।।
बाम= छत
गर कज़ा ही है सदाकत जीस्त की।
जी रहा क्यूँ आदमी सहमा हुआ।।
कज़ा= मृत्यु, सदाकत= सत्य, जीस्त=जीवन
तीरगी को मुँह चिढ़ाने में पवन।
जुगनुओं से पूछ लो क्या क्या हुआ।।
तीरगी= अंधेरा
✍ डॉ पवन मिश्र
कानपुर
कर्म से अध्यापक हूँ। मन के भावों को टूटे फूटे शब्दों की सहायता से काव्य रूप में उकेरने का प्रयास करता हूँ।
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