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शक

शक???

     दो अक्षर से बनी
     विकट बारूद सी !!!!
     दिलो मे चुभती शूल सी
     सुनकर भी नही सुनता है कोई....
     शक! ने दिलो में ऐसी बीज बोई....
     डाल देती हैं रिश्तों में ऐसी दरार...
     टुटते बंधन कर उठे पुकार
     नंगी खुली आँखो में भी ,
     छाता है अन्धकार ...!
     दिलों की धङकन भी,
     पड़ जाती हैं शून्य सी..
     दिखायी देती है,सत्यता में भी
     कुटिलता अपार ......!!
     करती है जो मन में,
     बार-बार प्रहार ....!!
     देखते ही देखते कर देती हैं
     जीवन को छिन्न तार ..!
     काँपती हैं आत्मा,रोती है
     आँख .....!
    मन्द-मन्द सी पङ जाती है,
    मृदु वाणी संचार...!
    खो जाता है दायरे में इसके,
    सारा अस्तित्व सार....!
    हैं महाहलचल भरी,आवेगित
    बूँद सी ....!
    मौन रूपी स्वर है,नही इसका
   स्वर कोई....!
   मृत्यु से भी विकराल,विस्मय
   रूप हैं .....!
        इसीलिए तो !!!
शक!!!!!
    'वास्तव में महज दिलो की भूल हैं ...!!!!


लेखिका :

✍  दीप्ति राय
      स0 अ0
      प्रा0 वि0 रायगंज खोराबार
      जि0 - गोरखपुर

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