बच्चे तो सारे ही अच्छे
बच्चे तो सारे ही अच्छे होतेे हैं।
बस हम ही बाँटते हैं उन्हें जाति में,धर्म मेंं।
उनकी मुस्कान में कहीं नजर नहीं आता धर्म......
हाँ मन को जरूर लुभाती है बरबस।
टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलते,
एक-दूसरे पर झपटते, खिलखिलाते,
मानो सिखा रहे हों हमें जिंदगी जीना।
लड़ना-झगड़ना...और फिर साथ चलना।
गोल-गोल सी आँखों से
कुछ ऐसे देखते हैं वो
कि मन खिंचता ही जाता है।
प्यारी सी बातों से
ऐसे मोहते हैं वो कि
अपना भी बचपन नजर आता है।
फिर कैसे करें बँटबारा उनका?
उन नन्ही उँगलियों का स्पर्श तो
पत्थर को भी मोम बना दे।
उनकी बातों की फुलझड़ियाँ तो
सारा तन-मन जगमगा दे।
किसी को छलने में ही
कच्चे होते हैं।
बच्चे तो सारे ही अच्छे होते हैं।
लेखिका :
✍ अलका खरे
प्र0अ0
कन्या प्राथमिक विद्यालय रेव,
ब्लॉक मोठ
जनपद झांसी
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