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ये घर भारत का है ।

ये घर भारत का है ।

दुश्मन का शीश झुकाएंगे
या अपना शीश कटा लेंगे
ये सर भारत का है...
ये घर भारत का है।


गंगा का  निर्मल  पानी  है।
कबिरा की निर्गुन वानी है।
मन मन में प्रेम का संगम है,
हर घऱ की यही कहानी है।
ये घर भारत का है ।

प्रेम पुष्प भी खिलते हैं ।
अंगारों  पर  चलते  हैं ।
रग-रग लहू उबलता है,
रवि की तपन में जलते हैं।
ये स्वर भारत का है...
ये घर भारत का है।


राम बसें हैं हर मन में,
रहमान की बातें अच्छी हैं।
अर्जुन ने शौर्य सिखाया है,
यीशु की ममता सच्ची है।
जाति, धर्म ये छुआछूत,
जहर भारत का है...
ये घर भारत का है।


जीवन में राधा सा प्रेम बसे,
लक्ष्मीबाई भी जीती हैं।
कान्हां के प्रेम विवश होकर ,
मीरा भी विष को पीती हैं।
ये घर भारत का है..2

जोश बोस का उमड़ रहा,
भगत सिंह की तरुडाई है।
गांधी का सत्य अहिंसा है
नव भारत की अंगड़ाई है।
हर प्रभात की धड़कन में
असर भारत का है...
ये घर भारत का है।


रचयिता
प्रभात त्रिपाठी
(स अ) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर

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