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मेरे अल्पहीन सपने

"मेरे अल्पहीन सपने,,...
            
           मत छीनो मुझसे 
        मेरे अल्पहीन सपने !!!
लेने दो इन्हे जरा,सृष्टि का आधार
उमड़ने दो कल्पना की ज्योति,
समर्पड़ करने दो मन की आकुल पुकार..
पल भर के लिए ही
पहचानने दो स्वयं की आत्मा
जो न मिल पाये
उसे अल्पकाल के लिए ही
स्वपन में ही मिल जाने दो।
    मत छीनो!!
मुझसे मेरा भविष्य का विधान

इतनी ही करुण। करो
बने रहने दो ,उसे मेरा सूत्रधार
आँखो की ग़हरी खाईयों में
वेगित होने दो....
पल भर के लिए ही
पख लगा के कल्पना लोक में
स्वछंद रूप से विचरण करने दो..
एक अजीब सी अकुलाहट है
अनगिनत प्रश्नों की लड़िया है
उसे मेरे स्वयं के तजुर्बे पर उतरने दो
मुझे कदम-कदम पर ,गिरकर सम्भलने दो
खुद की हँसती हुई आँखो को
बन्द ह्रदय के झरोखो से देखने दो।
         मत छीनो!!!
मुझे मेरी अभिलाषाओ के
नुपुर की गुंजित धवनि सुनने दो

अगर मैं भ्रमित स्वप्न में हूँ
तो भी मुझे,भ्रमित सीढ़ीया ही चढाने दो..
उन राहो से गुजरने दो
जो बाहे पसारे खड़ी है
शायद् मेरे मार्गदर्शन में।
अल्पकाल के लिए ही
    मगर!!!
पा लेने दो पग-पग की सफलता
मत दो ये महापीडा
सुसजित करने दो आँखो के सपने।
      मत छीनो !!
पल भर के लिए ही मगर
इन सब से मुझे गुजरने दो
      क्योंकि ......

ये मेरे जीवन का सत्य नही
      केवल है....
मेरे अल्पहीन सपने"'......!!!!

रचयिता
दीप्ति राय, स0 अ0
प्राथमिक विद्यालय रायगंज
खोराबार, गोरखपुर



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