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दर्द

सिहर - सहम उठता ये ज़माना हर आँख रोई
जिंदगी ने जब- जब भी अर्थी मौत की ढोई
कहीं टूटे सपनें किसी के छूट गये अपने
पाया इस दर्द को जिसने कब भूलता कोई
----- निरुपमा मिश्रा " नीरू "

2 comments:

  1. Replies
    1. बहुत आभार अवनीन्द्र जी,,, धन्यवाद

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