सिहर - सहम उठता ये ज़माना हर आँख रोई जिंदगी ने जब- जब भी अर्थी मौत की ढोई कहीं टूटे सपनें किसी के छूट गये अपने पाया इस दर्द को जिसने कब भूलता कोई ----- निरुपमा मिश्रा " नीरू "
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अवनीन्द्र जी,,, धन्यवाद
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