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शासनादेश का प्रभाव

          आज कल स्कूल में बड़ी गहमा गहमी चल रही है प्रधानाध्यापक जी भी बड़े प्रसन्न है शासन के एक आदेश ने सरकारी स्कूलों की टी आर पी एकदम बड़ा दी है ।ग्राम पंचायत के प्रधान के घर चेक लेकर चक्कर लगाने बाले प्रधानाध्यापक के दरवार में प्रधान और प्रधानिन स्वयं हाजिर हुए है साथ में गाँव के राजकुमार भी है प्रधान जी के बच्चे का पट्टी पूजन होना है ।अभी पिछले सप्ताह ही बी डी सी मेंबर और एनम् जी भी अपने बच्चों का नामांकन कराकर गयी हैं।सरकारी डीलर तो सबसे पहले अपने पूरे खानदान के बच्चों के नाम लिखा गया था ।गाँव से पलायन कर चुके कुछ समृद्ध परिवार भी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए वापस आ गए थे ।


          गाँव के सरकारी स्कूल की सुंदरता बड़ गयी है ।प्रधान जी ने वन विभाग से 50 बृक्ष लाकर लगवाये हैं ।पानी के लिए एक समर भी नलकूप विभाग ने लगवाया है । फटा नेकर और टूटी चप्पल पहने भिखारी टाइप बच्चों के बीच कक्षा में पाउडर और काजल लगाये सुन्दर से बच्चे भी विराजमान हैं।बात बात पर घिघयाने बाले प्रधानाध्यापक जी शूट बूट पहने शहर के नामी कान्वेंट के प्रिंसिपल की तरह नजर आ रहे हैं।
         आखिर एसी कौन सी संजीवनी मिल गयी कि गाँव का सडेला सा कहा जाने वाला स्कूल वी आई पी बन गया और हेड साहब सम्माननीय ।
        कुछ दिन पहले ही शासन ने गरीवों के लिए समाजवादी पेंशन योजना शुरू की थी जिसमे ये प्राविधान था कि उनका बच्चा सरकारी स्कूल में पड़ेगा और उसकी उपस्थिति स्कूल के प्रधानाध्यापक प्रतिदिन प्रमाणित करेगें।साथ ही शासन का आदेश हुआ है कि ग्राम पंचायत का आगामी चुनाव वही लड़ सकेगा जिसके बच्चे सरकारी स्कूल में तीन साल से पढ़ रहे हों।राशन कार्ड से राशन वितरण भी स्कूल द्वारा प्रमाणित उपस्थिति से होगा ।
         अभी तक भ्रम में जी रहे हेड साहब को भी अब पता चला कि जिन्हें वे अब तक रसूखदार समझकर नमस्कार ठोक रहे थे वो ही गाँव के सबसे गरीब लोग हैं उनमे से अधिकांश लोग बी पी एल कार्ड धारक हैं उन सबको सरकारी शौचालय और कॉलोनी का लाभ सरकार ने दे रखा है ।उनके बच्चों की वार्षिक आय 24000 से कम है गाँव में बने बड़े बड़े मकान तो उनके पुरखों के हैं पर वे उनसे अलग रहते है और बहुत गरीव है खेती भी उनके नाम नहीं है ।और हेड साहब जिन्हें गरीव समझकर  हेय दृष्टि से देखते थे वो सब तो गाँव के प्रधान से भी ज्यादा समृद्ध है उनके पास तो कुछ बीघा खेती भी है और कच्चा मकान भी ।
             खैर अब हेड साहब का रुतवा बड़ चूका था गरीवों का स्कूल अब जनप्रतिनिधियों का विद्यालय था ।प्रबंध समिति में अब पढ़ें लिखे लोग शामिल थे ।मासिक मीटिंग में प्रधानिन स्वयं आती थी और उनके दर्शन के लिए प्रधानाध्यापक जी स्वयं पूरी  व्यवस्था करते थे एस एम् सी की बैठक में  नाश्ता की व्यवस्था अब प्रधान जी स्वयं करते थे। ।प्रधान जी ने स्कूल चलो अभियान में अबकी बार 80 नए नामांकन कराये थे और विद्यालय के दिन पुराने घूरे की तरह बहुर चुके थे ।
          कक्षा के वाहर बैठे रहकर बतियाने वाले मास्टर अब चाक डस्टर लिए कक्षाओं में पढ़ाते नजर आते थे हेड मास्टर साहब को अब निरीक्षण का डर नहीं लगता था स्कूल की गुणवत्ता एक ही झटके में 500 प्रतिशत बड़ चुकी थी ।मिड डे मील में प्रधान जी ने बजट बड़ा दिया था सो गरीव बस्ती के बच्चे भी हरियाने लगे थे ।हाल में ही ग्राम पंचायत ने चंदा करके स्कूल को इन्वर्टर दान किया था ।जिससे बच्चे बड़े प्रसन्न थे ।स्कूल में अध्यापकों की कमी को प्रधान जी ने माननीय मंत्री जी के सहयोग से दूर करा दिया था ।निठल्ले बैठे रहने बाले प्रधान चयनित प्रेरक और शिक्षामित्र अब अतिरिक्त समय में क्लास लेते थे ।सफाई कर्मी प्रतिदिन स्कूल खुलने से पहले ही सफाई कर जाते थे ।गाँव के एक वेरोजगार को पंचायत ने 1000 रुपए पर अंशकालिक चपरासी नियुक्त कर दिया था ।गाँव के खुराफाती तत्वों को प्रधान जी की तरफ से  चेतावनी जारी हो गयी थी कि स्कूल की संपत्ति को नुकसान ना पहुचाया जाए,स्कूल अब प्रधान जी की निगरानी में है ।हेड साहब ने भी स्कूल की गरिमा के अनुरूप अपनी टूटाहा साइकिल बेचकर लोन पर नयी मोटरसाइकिल कसा ली थी ।
          सरकारी स्कूल में प्रभावशाली लोगों के बच्चों के नामांकन के प्रभाव में अगलबगल के गैर मान्यता बाले  डग्गामारी स्कूल बंद हो गए थे और उनके अच्छे बच्चे भी सरकारी स्कूल में आ गए थे ।जनपद स्तरीय प्रतियोगिताओं में स्कूल अपना नाम रोशन कर रहा था ।
         मैं भी बड़ा प्रफुल्लित सा अपनी फ़ाइल मोटी कर राष्ट्रपति पुरुष्कार की दौड़ में शामिल था आज मुझे विज्ञानं विषय का विशेष दक्षता पुरुष्कार जिलाधिकारी महोदय से  प्राप्त होना था ।मंच पर जोर से मेरा नाम पुकारा गया .............पर ये क्या ये तो मेरी पत्नी थी जो चिल्ला रही थी "कब तक सोते रहोगे स्कूल नहीं जाना है क्या ?" एक ही झटके में मेरी नींद खुल गयी और मैं बोझिल सा उठकर तैयार होने लगा और सोचने लगा कि फिर 6 घंटे निरीक्षण के डर और दहशत में काटने पड़ेंगे क्योंकि सपने में आये जनप्रतिनिधि और लाभार्थी नामांकन तो करा गए है पर वास्तविकता में  स्कूल पहुँचने पर गरीवों के बच्चे खेतों पर मिलेगे और अमीरों के बच्चे महँगे निजी विद्यालय में और हम दिन भर सड़क पर निकलने बाली सरकारी गाड़ियों को तककर अपना धुकधुका बढ़ाएंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक सपना जो सर्वथा सत्य के इतना करीब है ।।।।।

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  2. कितना अच्छा स्वप्न था गुरु जनों????काश ये सच हो जाता

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