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कामकाजी महिला

कामकाजी महिला(दोहरी ज़िम्मेदारी)

कामकाजी महिला हूँ मैं
 ना पूरी घर की ,ना हो पाई कार्यस्थल की ।
घड़ी की सुई से भी तेज दौड़ती
 फिर भी हर काम अधूरा रखती।।
 सास की उम्मीद पर ना खरा उतरती 
बच्चों को ना भरपूर प्यार ही करती ।
कामकाजी महिला हूँ मैं 
ना पूरी घर की, ना हो पाई कार्यस्थल की ।।
श्रृंगार तो जैसे छूट गया 
यौवन मेरा रूठ गया ।
भागदौड़ के इस चक्कर में 
क्या- क्या मुझसे छूट गया।।
 ना बच्चों को लोरी सुनाती
 ना गीत मिलन के गाती।
 ना सखियों से मिलने जाती 
ना पीहर का लुत्फ उठाती।।
 कामकाजी महिला हूँ मैं 
ना पूरी घर की, ना हो पाई कार्यस्थल की ।
छुट्टी का दिन भी है आता
 सबकी उम्मीदें और बढ़ाता ।।
मन चंचल आराम खोजता 
तन बेचारा भाग -भाग कर 
काम है करता ।
एक समय वो भी है आता 
छुट्टी का दिन हवा हो जाता।।
 कामकाजी महिला हूँ मैं
 ना पूरी घर की ना हो पाई कार्यस्थल की।
 पर है यह भी उतना ही सत्य 
अंत में बच्चों का खिलखिलाना।
 पति का सीने से लगाना
 सास -ससुर का प्यार से मुस्कुराना ।।
भर देता है नई ऊर्जा और संचार
 अगले दिन के लिए हो गए हम तैयार।
 प्रेम और त्याग का मिश्रण है मेरा परिवार 
मैं उन्हें, वो मुझे खुश रखने को
 दिन रात मेहनत करते हैं अपार ।।
मैं तो संतुष्ट नहीं हूँ कि, 
 खुश रख पाती हूं उन्हें
 पर मेरी सफलता और हिम्मत का 
 वो ही हैं आधार ।
कामकाजी महिला हूँ मैं 
ना पूरी घर की, ना हो पाई कार्यस्थल की ।।

✍️
 सुप्रिया मिश्रा (सहायक अध्यापक ) 
 संविलियन विद्यालय पूर्व माध्यमिक विद्यालय पिपरा गंगा
 क्षेत्र -खजनी ,जनपद- गोरखपुर

1 टिप्पणी:

  1. हृदय को स्पर्श करने वाली पंक्तियां. यह काव्य भी दिल को इतना छू रहा है और विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है कि नारी का ह्रदय कितना विशाल है वास्तव में नारी विश्व में में गौरव का प्रतीक है👌🙏काव्य सृष्टि की संरचना करने वाली इस देवी को हृदय से नमन🙏

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