दिए की सोच
🌹🪔 दिए की सोच🪔🌹
दीप की लड़ियां सुशोभित,
तम जगत के हर रहीं।
छाया है उल्लास सब में,
अधर तबस्सुम सज रहीं।
दीप खुद में हो प्रज्ज्वलित,
नव संचार भरते रहें।
खुद जल के करे जग को प्रभावित,
मन के तार झंकृत कर रहीं।
दीप की लड़ियां.................
निशा घनेरी बीत न जाए,
आओ स्वर्णिम प्रभात बन।
घन तिमिर क्षितिज तक छा सा गया,
आभा छिटकाओ किरणे बन।
दीप की लड़ियां...........
हे सकल धरा के प्राणी तुम,
चक्षु पटल दृग खोल चलो।
कुछ मार्ग प्रशस्त है नेक प्रखर,
लक्ष्य वीणा के उठा के चल।
दुःख, विषाद,संताप कष्ट ईर्ष्या,द्वेष से भरे भाव,
रिश्तों पर पड़ी जमी धूल को,
स्नेह भाव से मिटाता चल।
दीप की लड़ियां..............
खुद जल के करे जग प्रकाशित,
ऐसा महान कोई कही ना दिखे।
आडम्बर, कलुषित, कुंठा,
इन पर नेह आवरण चढ़ाता चल।
दीप की लड़ियां.......
ले शपथ हृदय में भाव भरो अब,
निर्मूल प्रेम भाव जगाता चल।
अंतर्मन की पीड़ा हरने को,
दीपों की लड़ियां बिछाता चल।
उत्साहित हृदय उदगार लिए,
अधरो पर तबस्सुम सजाता चल।
दीप की लड़ियां.....................
तम जगत के हर रहीं।।।।।।
✍️
ममताप्रीति श्रीवास्तव
(प्रभारी प्रधानाध्यापक)
गोरखपुर
उत्तर- प्रदेश, भारत।
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