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बागेश्वरी जीवन - तिमिर हर दे

वसंत प्रकृति में रंग और गंध का उत्सव है और वसंतपंचमी ज्ञानदायिनी माँ  सरस्वती के प्रकटोत्सव का दिन। जो हमारी बुद्धि, प्रज्ञा और मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। संगीत की उत्पत्ति करने वाली माँ सरस्वती की वीणा के मधुर नाद से ही समस्त जीव - जगत को वाणी प्राप्त हुई है। शब्द और रस का संचार करने वाली अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती से इस कविता में यह प्रार्थना की गई है कि माँ की वीणा की गूँज मानव मात्र के हृदय में गुँजायमान हो जिससे अज्ञानता के तिमिर का नाश हो और एक शोषण मुक्त समाज की स्थापना हो सके।



बागेश्वरी जीवन - तिमिर हर दे 
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वाग्देवी तुझे स्वर - नैवेद्य अर्पित, 
है कोटि जन की पीड़ा समर्पित, 
भेदती जीजिविषा को दैन्य पीर, 
अव्यक्त को स्वर दे, न कर अधीर, 
जीवनभासनि, दु:खनाशनि वर दे । 


बागेश्वरी जीवन- तिमिर हर दे,  
मन में नव ज्ञान ज्योति भर दे, 
करुणा के झरें झरने झर - झर, 
पावें तेरी दया चर  औ  अचर, 
जीवनभासनि दु:खनाशनि वर दे। 


तू दीन के मन में विचर  , 
जागे नव चेतना प्रखर  ,  
आप्लावित हो उठे जनमन, 
फूटे सहस्रों विचारों के नद, 
जीवनभासनि दु:खनाशनि वर दे। 


खिल उठे तू जीवन संवार दे, 
अपनी ममता हम पर वार दे, 
तू शब्द शक्ति दे  , विचार दे , 
हमारी डूबी चेतना  उभार दे  , 
जीवनभासनि दु:खनाशनि वर दे। 


जीवन को मिले अर्थ जागे शक्ति, 
तुझमें लय हो जाए सम्पूर्ण भक्ति, 
प्रदीप्त हो तेरा  ज्योतिर्ज्ञान , 
सुवासित हो जीवन विहान   , 
जीवनभासनि दु:खनाशनि वर दे। 


शब्दों में भर दे क्रान्तिज्वाला, 
जल उठे  मनोमालिन्य काला, 
शब्दों में इतनी प्रभाविता दे  , 
मिटे अज्ञानभीति मंत्र फूँक दे, 
जीवनभासनि दु:खनाशनि वर दे।  

✍ रचनाकार :
प्रदीप तेवतिया
वि0ख0 - सिम्भावली,
जनपद - हापुड़
सम्पर्क : 8859850623



 

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