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दर्द की दवा

दर्द की दवा

कविता का मैं तान न जानूँ,
दर्द दिलों का गाता हूंँ।
सूख गये जब मरहम सारे,
दवा दर्द की लाता हूँ।।

वर्णों का विन्यास न जानूँ,
मन शब्दों से बहलाता हूंँ।
जब बाहर ढूंँढे नीर नहीं,
तन अश्कों से नहलाता हूँ।।

अंकों का मैं खेल न जानूँ,
शून्य में ही खो जाता हूंँ।
उर की उर्वर भूमि में,
बीज नये बो जाता हूंँ।।

गिरि से गिरती जल की धार,
शायद सरिता बन जाती है।
भाव के मोती जब सजते हैं,
शायद कविता बन जाती है।।

 
✍️अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"(सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)

1 टिप्पणी:

  1. मैं भी शिक्षक होने के साथ साथ एक लेखक और कवि भी हूँ। मैं भी अपनी रचनाओं को शेयर करना चाहता हूँ। इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है? कृपया बतायें।

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