मैं भारत का लोकतंत्र हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ नित नित चोट नये खाता हूँ।
सारे धर्म बसें हैं मुझमें पर मैं धर्मों से जुड़ा नही,
हर नुक्कड़ चौराहों पर नित धर्मों में बांटा जाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ.....
रोहित को मारा जाता है अखलाख कहीं मर जाता है,
जो बड़े हवेली वाले है उनका सिहरन भी डर जाता है,
ये सब बातें जख्म बनाती
नित सबको समझाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
आता है मेरा त्यौहार
होती है फिर जयजयकार
सब करते हैं मुझसे प्यार
किसी की जीत किसी की हार
फिर पांच साल रौंदा जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
नोटों को मेरे मंदिर में कभी उड़ाया जाता है
तेज मिर्च के फुंकारों से मुझको महकाया जाता है
कभी गालियों की गंगा से मैं भी नहलाया जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
रात घनी थी शोर बड़ा था
जयकारा हर ओर मचा था
मुझे नाम आज़ादी देकर
नित जंजीरों में जकड़ा जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ
आज शब्द को लेकर के
जनगण की आवाज़ बनाकर
इस प्रभात के कंधे पर चल
तुम्हे जगाने मैं आता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ
नित नित चोट नये खाता हूँ।
अरि प्रहार भी सह लूंगा
घरे अँधेरे में रह लूंगा
पर खंजर सीने में अपने
संतानों से खुद पाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ..
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ..
मुझे सम्भालो
मुझे बचालो
ये भारत के लालों
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ।
रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
सारे धर्म बसें हैं मुझमें पर मैं धर्मों से जुड़ा नही,
हर नुक्कड़ चौराहों पर नित धर्मों में बांटा जाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ.....
रोहित को मारा जाता है अखलाख कहीं मर जाता है,
जो बड़े हवेली वाले है उनका सिहरन भी डर जाता है,
ये सब बातें जख्म बनाती
नित सबको समझाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
आता है मेरा त्यौहार
होती है फिर जयजयकार
सब करते हैं मुझसे प्यार
किसी की जीत किसी की हार
फिर पांच साल रौंदा जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
नोटों को मेरे मंदिर में कभी उड़ाया जाता है
तेज मिर्च के फुंकारों से मुझको महकाया जाता है
कभी गालियों की गंगा से मैं भी नहलाया जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ...
रात घनी थी शोर बड़ा था
जयकारा हर ओर मचा था
मुझे नाम आज़ादी देकर
नित जंजीरों में जकड़ा जाता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ
आज शब्द को लेकर के
जनगण की आवाज़ बनाकर
इस प्रभात के कंधे पर चल
तुम्हे जगाने मैं आता हूँ
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ
नित नित चोट नये खाता हूँ।
अरि प्रहार भी सह लूंगा
घरे अँधेरे में रह लूंगा
पर खंजर सीने में अपने
संतानों से खुद पाता हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ..
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ..
मुझे सम्भालो
मुझे बचालो
ये भारत के लालों
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ।
मैं भारत का लोकतंत्र हूँ।
रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी
(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
(9795524218)
सटीक
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