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ममत्व

विमली के लिये अब इस बात का क्या मतलब कि डाक्टरनी ने लापरवाही की या बच्चे का गर्भनाल उसके गले में लिपटा,उसके लिये तो बस यह खबर पागल कर देने वाली थी कि....भगवान को यही मंजूर था।

कहते हैं कि प्रभु जब प्रसव की असीम वेदना देता है तो उसके साथ सबसे अद्भुत औषधि ,ममत्व सुख के रूप में देता हैं लेकिन औषधि ही जब शूल बनकर पीड़ा देने लगे तो उस पीड़ा के लिये कौन सी औषधि आजमाई जाये। केवल "धीरज धरो दुल्हिन", धीरज धरो.. 'यह शब्द' उस असहनीय वेदना पर कितना मरहम लगायेंगे। उन आंसुओं के सैलाब को भला कैसे रोक पायेंगे ?

हफ्तों गुजर गया लेकिन विमली के नयनों के आंसू उसके नयनों की पहरेदारी और गालों पर लकीर खींच कर बैठे ही रहते। काश ! उसके स्तनों के दूध भी यह समझ पाते कि उसके अर्थ और सम्मान को समझने वाला, उसे बिन स्पर्श किये, दगा देकर चला गया। अब तुम्हारा वहाँ से उतरना, एक बिन बच्चे की माँ के लिये कितना पीड़ादायक है, यह तुम सोच भी नहीं सकते। यह सच है कि 'तुम जीवन हो' लेकिन एक बिन बच्चे की माँ के अंगों में गुजरते समय तुम्हारा होने वाला एहसास और तुम्हारा रंग, हर बार उसे कितना व्यथित करता होगा शायद तुमको नहीं पता। तुम्हारी कसावट, उसको पागल कर देती है, कितना कठिन है हर बार विमली के लिये तुमको खुद से अलग करना....और हर बार, तुम्हारा एक माँ के हृदय को कचोटने का कारण बनना।

वक्त भी न ! पूरी तरह रोने का मौका नहीं देता और फिर से डाल देता है जिम्मेदारियों का बोझ, वह भी शायद एक दवा ही है। काम एक जरिया बन जाता है तकलीफ़ से मन हटाने के लिये और थकान सोने के लिये दवा....

आज उधर गांव में कुछ दूर पर फिर रोना-चिल्लाना मचा है। सुनने में आ रहा है कि सुरेश बो को बच्चा पैदा होने वाला था और अत्यधिक रक्तस्राव में प्रसव के बाद सुरेश बहु प्रसव के दौरान ही दम तोड़ दीं। लेकिन वह अपना एक अंश इस दुनिया में छोड़ गयी, उसके नन्हीं आखों से अपनी बची हुई दुनिया देखने के लिये।

 इतनी बड़ी दुर्घटना और नवजात को पालने-पोसने का तनाव मामूली थोड़े ही है ... नवजात की दादी और बुआ का तो रोरोकर बुरा हाल था। लेकिन इंसान करे भी क्या ? उसे ईश्वर के हर आदेश का पालन तो करना ही है...सबने तो सब्र कर लिया लेकिन बच्चे को कैसे समझाया जाये। उसे तो माँ के शरीर का अमृत चाहिए। गाय का दूध एक विकल्प है लेकिन माँ तो नहीं न ! भूख से बिलखते बच्चे को बोतल से दूध पिलाया तो जा सकता है लेकिन मां के गोद की गर्माहट और अनोखा स्पर्श कहां से ढूढ़ा जाये...

एक दिन मालिश करने वाली नाइन ने बच्चे की दादी को बताया- चाची बच्चे को मां का दूध चाहिए और गुलाब की दुल्हिन बिन बच्चे के, दूध लेकर परेशान रहती है। काहें न बात करती चाची... अरे !  बच्चा भी पल जायेगा और गुलाब बो को भी आराम मिलेगा बेचारी बच्चे के बीच रहेगी तो उसका मन भी बहल जायेगा..

बच्चे की दादी दोपहरी को विमली के घर गयीं और उसके सर पर हाथ रखकर एक दूसरे का दुख-दर्द रोयीं और धीरे से बोलीं दुल्हिन बाबू अभी बहुत छोट है। हम लोग के लाख जतन के बाद भी बिन महतारी के लइका एकदम टूअर बन जात है, केतनो ह त माई त माई होत है.. गाय क दूध पिलावत हैं तो  सूट न करत दुल्हिन, अगर तू आपन दूध पिला देती त हमार बाबू पोसा जात। बड़ी एहसास होइ दुल्हिन...

 इतना सुनते ही विमली के आँख, आंसुओं में तैरने लगे और फफक कर रो पड़ी और फिर रोते-रोते अपने कमरे में चली गयी उधर सुरेश की अम्मा भी चुपचाप आंसू पोछकर वापस अपने घर लौट आयीं।

सांझ के बेला तक जब विमली पहले से सामान्य हुई तो अपने सास से पूछीं- 'अम्मा' दोपहर में सुरेश की अम्मा आयीं थी और अपने नाती को दूध पिलावे के खातिर कह रहीं थीं। का करें ? रोज छाती में दूध कस जाता है आप कहें तो......
विमली की सास कुछ देर सोचकर बोलीं ठीक बा दुल्हिन, लेकिन अपनो खुराकी क भी ध्यान देना, बच्चे जब दूध पीयत हैं तो महतारी के शरीर पर बड़ा जोर पड़त है।

विमली अपनी सास से अनुमति पाकर उनके घर सन्देश भिजवायी कि बाबू को लेकर आयें। सन्देश पाते ही सुरेश की अम्मा, बाबू को अचरा में छुपा कर विमली के घर पंहुची। विमली ने बच्चे को गोद मे लिटाकर ज्यों ही स्तनपान कराना शुरू किया उसके दूध और आंसू दोनों अपने आप अपना जगह छोड़ दिये। बच्चे का पेट दूध से भर रहा था और मां के गाल आंसुओं से.... स्तनपान, मातृत्व और पीड़ादायक स्मृतियों का यह संगम माँ के चेहरे पर कोई भी पढ़ सकता था।

और फिर बच्चे को माँ मिल गयी और विमली को एक दायित्व और शायद कुछ समय के लिये बेटा भी...

समय बितता गया बच्चा माँ में सिमटता गया। अब उसने माँ की गंध को पहचाना सीख लिया था। ज्यों ही वह माँ  की गोद में आता उसकी चंचलता और मुस्कान में नैसर्गिक ऊर्जा भर उठती... मां भी सुबह से बच्चे की राह तकती... दूध पिलाने के सिवा वह अन्य काम भी बेझिझक कर देती जो एक मां करती...

बच्चे भी न ! कितने निश्चल होते हैं, वो यह भी नहीं समझते कि उनको  किस माँ के स्तन पर दाँत गड़ाने हैं। अपनी माँ तो मसूड़े और दांतों कि कितनी भी चुभन हो बस दांत पीसकर और आह बोल कर सह लेगी लेकिन दूध पिलाना नहीं छोड़ेगी लेकिन आग्रह वाली माँ 'भला क्यों करे इतना बर्दाश्त' ! क्या अभी तक की पीड़ा कम थी की तुम मसूड़े भी धंसा रहे हो। लेकिन विमली भी उसके इस हठपन और शरारत पर केवल अपने दांत पीसकर रह जाती। हांलाकि उसकी दादी,बच्चे की शरारत से डरकर, एक चपत धीरे से उसके मुंह पर लगा कर यह संकेत देती कि तुम अपनी सीमा को पहचानो... शायद दादी भी अब माँ-बेटे के प्रेम की गहराई को महसूस नहीं कर पा रहीं थीं  कि अब यह सम्बन्ध केवल दूध, स्तन और भूख का नहीं है यह सम्बन्ध रक्त के स्तर को स्पर्श कर चुका है... दूध अन्दर तक उस मां के रिश्ते को लेकर पहुंच रहा है और बच्चे की सांसो की तरंग स्तन से हृदय तक पहुंच कर अपने सम्बन्धों की मजबूत गांठें लगा रहा है।

विमली के मायके वाले तीन-चार बार उसे मायके ले जाने के लिये आये कि कुछ दिन मायके रहेगी तो काम-धाम से आराम मिलेगा लेकिन विमली के लिये तो बच्चे के पोषण का दायित्व उसे एक दिन के लिये भी हटने से मना कर देता।
उधर विमली की सास ने, बच्चे को दूध पिलाने की अनुमति तो दे दी लेकिन रोज-रोज का आना-जाना और विमली के शरीर का सूखते जाना उन्हें खटकने लगा, कभी-२ वह सुरेश की अम्मा से रूखा व्यवहार भी कर जातीं लेकिन सुरेश की अम्मा अपने नाती के लिये चुप रह जातीं...

आज पता नहीं क्यों ? रात को आठ बजे दूध पिलाने के बाद भी 'बाबू सो नहीं रहा'... बच्चे की दादी और बुआ ने बहुत घुमाया-टहलाया लेकिन बाबू लगातार रो रहा था जब घर भर हार गये तो सुरेश बाले-तनिक एक बार इसकी मां के पास लेकर चली जाओ हो सके कि दूध पीकर सो जाये।
रात को दस बजे विमली के घर सभी सो गये थे। सुरेश की अम्मा विमली के घर पहुंच, बाहर से ही  "ए दुल्हिन-ए दुल्हिन" आवाज देने लगीं, ऊधर विमली से पहिले, उनकी सास बोल पड़ी- का है ?  यहाँ सब सो गये, कल आना। सुरेश की अम्मा लाचार बन बोलीं- दीदी पता नाहीं क्यों..बाबू आज सो नहीं रहा। हम सोचे कि.... तब तक विमली की सास, बात काट कर बोलीं 'नजर लग गई होगी' तनिक मिर्चा सुलगा दो सो जायेगा....

सुरेश की अम्मा समझ गयीं कि दीदी हमको टाल रही हैं लेकिन अपने घर जा कर बोलीं कि लगत बा सब लोग सो गये हैं... जाये दो, का परेशान करें बेचारी को।

इधर विमली के लिये 'बाबू का रोना' और उसका 'तबियत खराब सुनना' बेचैन करने लगा। विमली अपने बिस्तर से उठकर दो बार छत पर गयी और छत से बाबू को झांककर देखने का  प्रयास की लेकिन सास के भय से लौट आयीं। इसी बेचैनी और उधेड़बुन में आधे घंटे बीत गया, लगातार टहलते-टहलते न जाने उसकी ममता ने कब पीछे की सिकड़ी खोल कर उसके कदमों को अपने बस में कर लिया विमली को खुद भी न पता...
वह तेज कदमों से चलकर सुरेश के घर रुकी। बच्चा अभी भी अपनी बुआ की गोद में रो रहा था, लेकिन आवाज़ कुछ मंद जरूर थी शायद वह रोते-रोते कुछ थक गया था। विमली नें धीरे से बच्चा अपने गोद में लिटा लिया। घंटों से रोता हुआ बच्चा मां की गंध और अमृत को मुंह लगाकर तेज सांस के साथ नींद में खोने लगा और विमली दीवार की टेक पर बैठी अपने ममता के अधीन आंख मूद कर बैठी रही। न जाने कब बाबू और फिर बैठे-बैठे विमली नींद में चली गयी पता न चला....

सुबह के चार बजे जब विमली की सास नींद से जागीं और देखा कि पीछे की सीकड़ी खुली है तो वह भाग कर विमली के कमरे में झांकी लेकिन वह, विमली को वहाँ न पाकर  समझ गयीं कि वह कहां होगी और फिर सुरेश के घर दौड़ीं....

सुरेश के घर बाहरी कमरे में कमरे की दीवार पर टिकी विमली और गोद में सोता बच्चा देखकर उनकी आंख भर आई वह धीरे से विमली के किनारे बैठ उसके सिर पर हाथ रखीं, अम्मा के हाथ रखते ही की विमली की आंख खुल गयी और वह सहम गयी। विमली असहज होकर कुछ कहना चाही.... लेकिन मां, उसे रोकर बोलीं- बेटी घर चलो भोर हो गयी...कब तक ऐसे बैठी रहोगी..
अम्मा को रोता देख विमली का गला भर आया और वह फफक कर रो पड़ी।
विमली की सास नें विमली का सर अपने कन्धे पर रख, थपकी देकर बोलीं-
बेटी,ममता अंधी होती है, यही "मां है जो अपने बच्चे को रोता और भूखा देखकर पागल हो जाये..
आओ घर चलकर थोड़ी देर लेटकर आराम कर लो॥

लेखक
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर


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