भारत माँ की व्यथा...
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
व्यर्थ गयी सबकी कुर्बानी
बलिदान सबका व्यर्थ गया
मिलजुलकर रहने का सपना
मानो जैसे टूट गया
वीर शहीदों के दिल में भी
शूल कोई चुभता होगा
सरहद-सरहद यहाँ ज़मीं को
जब बँटते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
संस्कार न बचे किसी में
नैतिक मूल्य भी नहीं रहा
कदम-कदम पर घात लगाए
यहाँ शिकारी घूम रहा
धरती माँ का सीना भी
दर्द से चीख उठा होगा
तार-तार नारी की आबरू
जब लूटते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
रिश्तों का इस दुनियाँ में
अब न कोई मूल्य रहा
राम यहाँ पर राज़ करे और
दशरथ वन वन भटक रहा
मातृ-भूमि के दिल में भी
काँटा सा चुभता होगा
दौलत की ख़ातिर लक्ष्मी को
जब जलते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
रचयिता
अनुराधा प्लावत
उ०प्रा०वि०झरौठा
बल्देव
मथुरा उ०प्र०
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
व्यर्थ गयी सबकी कुर्बानी
बलिदान सबका व्यर्थ गया
मिलजुलकर रहने का सपना
मानो जैसे टूट गया
वीर शहीदों के दिल में भी
शूल कोई चुभता होगा
सरहद-सरहद यहाँ ज़मीं को
जब बँटते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
संस्कार न बचे किसी में
नैतिक मूल्य भी नहीं रहा
कदम-कदम पर घात लगाए
यहाँ शिकारी घूम रहा
धरती माँ का सीना भी
दर्द से चीख उठा होगा
तार-तार नारी की आबरू
जब लूटते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
रिश्तों का इस दुनियाँ में
अब न कोई मूल्य रहा
राम यहाँ पर राज़ करे और
दशरथ वन वन भटक रहा
मातृ-भूमि के दिल में भी
काँटा सा चुभता होगा
दौलत की ख़ातिर लक्ष्मी को
जब जलते देखा होगा
भारत माँ के सीने में भी नश्तर चुभता होगा....
अपनों के हाथों जब उसने सब लुटते देखा होगा.....
रचयिता
अनुराधा प्लावत
उ०प्रा०वि०झरौठा
बल्देव
मथुरा उ०प्र०
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