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बेसिक शिक्षा विभाग के मृत शिक्षक के पाल्य की वेदना

जब से आप गए हो पापा, प्रति क्षण मैंने याद किया !
इतनी जल्दी मुँह मोड़ा क्यों, ऐसा क्या अपराध किया !

घुट-घुट कर हर रात गुजरती दिन कटते थे रो-रो कर !
आठ बरस की उम्र में जाने क्यों मुझको बरबाद किया !

नाजुक से कंधे थे मेरे और कोमल थे हाथ बड़े !
निश्छल सी आँखे थी जिनमे पलते थे जज्बात बड़े !

सोचा था अफसर बन कर पापा का नाम बढ़ाऊँगा !
पूरा गाँव नहीं कर पाया वो करके दिखलाऊँगा !

ठान लिया था मन मे एक दिन कार बड़ी सी लाऊँगा !
उसमे बैठा कर पापा को विद्यालय ले जाऊँगा !

लेकिन आप के जाते ही हालात से यूँ मजबूर हुए !
आठ बरस तक देखे थे जो सपने चकनाचूर हुए !

आँखों मे बस आँसू थे ना कोई पोंछने वाला था !
सर पर मेरे छत नहीं थी मुँह से दूर निवाला था !

नहीं जानता था पापा वो आप को थी बीमारी क्या !
दर्द पे दर्द सहे जाते थे ऐसी थी लाचारी क्या !

मन मे प्रश्न हजारों उठते थे लेकिन सो जाता था !
और जब नीद नहीं आती तो कभी कभी रो जाता था !

डरता था मै आपकी निष्क्रिय आँखों के पीलेपन से !
दुर्बल सी वह देह देख कर तकिये के गीलेपन से !

लगता था कैसे भी कर जल्दी से बड़ा हो जाऊँ मैं !
जो भी हो जैसे भी बस पैरों पे खड़ा हो जाऊँ मैं !

फिर दुनिया के अच्छे से अच्छे डाक्टर को लाऊँ मै !
पापा का फिर बढ़िया से बढ़िया इलाज करवाऊँ मै !

लेकिन ऐसा हो पाता उससे पहले दिल टूट गया !
हम किस्मत के मारों से जब हाय विधाता रूठ गया !

वो दिन मेरी आँखों को अब भी रक्तिम कर जाता है !
जब जब याद आती है पापा ह्रदय मेरा भर आता है !

बीत गए हैं वर्ष अठारह लेकिन कल की बात लगे !
चुभे चाँदनी रात बदन में तेजाबी बरसात लगे !

सूरज की किरणें मेरे घावों को और जलाती हैं !
वीणा की मधुरम ध्वनियाँ दिल को घायल कर जाती हैं !

सपने चकनाचूर हो गए, हम कितने मजबूर हो गए !
पढ लिख कर इस विभाग में हम अपनो से दूर हो गए !

चपरासी की जिल्लत भरी नौकरी हमने अपनायी !
तब जाकर दो जून की रोटी खायी और खिला पायी !

प्रेरक शिक्षामित्र अनुदेशक सबकी गाली खाते हैं !
शिक्षक सुत होकर भी अपना अनुचर धर्म निभाते हैं !

हाँ ये सच है मुश्किल से अधिकार संभाला हैं हमनें !
पूरी शिद्दत से परिवार संभाला है हमनें !

इस दुनिया में अपनों को खुश रखने की हसरत में !
घाटे में भी पुरखो का व्यापार संभाला है हमने !

क्या लिखूँ ए कलम बता तू कोई नहीं है साथ मेरे !
और गला भी भर आया है काँप रहे हैं हाथ मेरे !

मन्दिर मे बैठे अजनबियों से इतनी विनती मेरी !
अगले जन्म में हो खुशकिस्मत वालों मे गिनती मेरी !

रहे सदा आशीष पिता माता का अपने बच्चों पर !
और बरसती रहे मुहब्बत हर दम दिल के सच्चों पर !

लेखक
एलेश अवस्थी
जनपद-फिरोजाबाद

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