पड़ा राम से काम !!
एक बशेसर राम, एक था उनका बेटा।
देखै ऊँचे ख्वाब, रहै वो हरदम लेटा।
बप्पा रहैं किसान, कहैं रे बेटा पढ़ ले।
पकड़ तरक्की राह,उसी पर आगे बढ़ ले।
राह नहीं आसान, बड़ा मुश्किल अडमीशन।
ठहरे आप गरीब, बुरी अपनी कण्डीशन।
लगते ऊँचे दाम, पुत्र जी बोले हँसकर।
लिखवा दो यदि नाम,बनूँगा अफसर पढ़कर।
बेच खेत खलिहान, बशेसर गये शहर को।
डोनेशन दस लाख, जमा कर लौटे घर को।
मोटी देख किताब, पुत्र का बहा पसीना।
लिखवाये तब नाम, न बीता एक महीना।
चढ़ा शहर का रंग, पिता से बोले आकर।
घर से कालिज दूर,हमें दो गाड़ी लाकर।
करते क्या श्रीमान, उसे गाड़ी दिलवाई।
समझो उसके बाद, पुत्र की मति चकराई।
टाइट पहिनै जीन्स, भकाभक मारै सुट्टा।
मूछैं साफ कराय, सांड़ सा घूमै छुट्टा।
आवा जब परिणाम, बशेसर सन्नाटे मां।
पड़ा राम से काम, रहा सौदा घाटे मां।
रचनाकार- निर्दोष कान्तेय
काव्य विधा- रोला छंद
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