पांच सिक्के
यूं बीता समय जैसे;
हाथ से रेत फिसलती है,
किस्मत भी न जाने कैसे;
तस्वीर बदलती है,
बह जाते हैं झरने की तरह;
अरमानों के समंदर ,
जमीन दिल की;
रह रह के सुलगती है।
...........................
भीग जाता है चाँद कभी
मेरे आसुओ की नमी से
कभी इतना भीगता है कि
सूखता ही नही।
...........................
दर्द आँखों में उतरता है तो आंसू बनता है
प्यार आँखों में उतरता है तो नशा बनता है
महकते हैं साँसों के झरने तभी
साथ किसी का जब दवा बनता है।
................................
मन की दीवारों से टकरा कर
हम ना जाने कब गिर गए
खिड़कियां भी तो नहीँ हैं कि देख सकें
अभी जो छटे थे बादल
फिर कब घिर गए।
.............................
कलम टूट जाती है
स्याही भूल जाती है रंग अपना
कागज हर्फ़ पहचानते नहीँ
जब हम लिखने बैठते हैँ
इसमें दोष उनका नहीँ
मेरे ख्यालों का ही होगा शायद........।
हाथ से रेत फिसलती है,
किस्मत भी न जाने कैसे;
तस्वीर बदलती है,
बह जाते हैं झरने की तरह;
अरमानों के समंदर ,
जमीन दिल की;
रह रह के सुलगती है।
...........................
भीग जाता है चाँद कभी
मेरे आसुओ की नमी से
कभी इतना भीगता है कि
सूखता ही नही।
...........................
दर्द आँखों में उतरता है तो आंसू बनता है
प्यार आँखों में उतरता है तो नशा बनता है
महकते हैं साँसों के झरने तभी
साथ किसी का जब दवा बनता है।
................................
मन की दीवारों से टकरा कर
हम ना जाने कब गिर गए
खिड़कियां भी तो नहीँ हैं कि देख सकें
अभी जो छटे थे बादल
फिर कब घिर गए।
.............................
कलम टूट जाती है
स्याही भूल जाती है रंग अपना
कागज हर्फ़ पहचानते नहीँ
जब हम लिखने बैठते हैँ
इसमें दोष उनका नहीँ
मेरे ख्यालों का ही होगा शायद........।
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं(h) (h) (h) (h)