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चौमसा की परत

चौमसा की परत..

नीरव प्रहर में 
जब नहीं बज रहा होता 
आस का घुनघुना 
तब खुद  से दबा 
आत्मग्लानि का ढेर 
ठुर्राए  समय  में 
एक तिल -छिन भर 
तोड़ना चाहता है ,चुप्पी।।

सीली आंखों की 
दियासलाई में 
धूप की लच्छियां
 लपेट कर जाते हुए
 बादलों के चलते 
चल चित्र मांगते हैं 
आवाजाही का आखत।।

आवाज की धार में उतरा
पथरीलापन नहीं 
काट पता खामोशी के
चौमासा की परत 
तब सहत मन
सिरज लेता है 
पियरायी धरती का पीलापन।।

  ✍️
 नवीन
प्रयागराज

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