ऐसा होता है पुरुष
ऐसा होता है पुरुष
एक पुरुष
जब एक पिता बनता है
अपने सपनों को भूल कर
पिता के हर फर्ज को निभाता है।
अपने बच्चों की खुशियों को आँखों में
ख्वाबो सा सजाता है।
एक पति बनकर
पत्नी के लिए
आसमान से तारे तोड़ लाने तक की
बात कर जाता है।
जिम्मेदारियों को दिन रात उठाता
व्यथित हो या क्लांत
आता हैं जब भी
सामने पत्नी के
चेहरे पर एक मधुर सी
स्मिता लिए आता है।
पुत्र बनकर आलय संवारता
माता-पिता की नित सेवा करता,
अपने मानस की व्यथा खुद सुनता
हर कर्त्तव्य हर रिश्ता निभाता है।
छिपा लेता है अपने आंसू
दर्द अपना कभी नहीं कह पाता,
शिकन थकान नहीं होती कभी
फिर भी अपने लिए
किसी से सराहना भरे शब्द
नहीं सुन पाता है।
शिकायत कभी किसी से
नहीं कर पाए
हर किसी के दुख को अपना माने।
उसके लिए भी कोई सोचे
दर्द उसका कभी-कभी बांटें
ऐसा भ्रम वह
कहाँ पाल पाता है।
हाँ ऐसा ही होता है पुरुष
जो हर रिश्ते को संभालता है
आलय का अटूट स्तंभ बन जाता है।।
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दीप्ति राय दीपांजलि
कंपोजिट विद्यालय रायगंज
खोराबार गोरखपुर
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