तुम्हें कमजोर मानने की इजाजत नहीं है
तुम्हें कमजोर मानने की इजाजत नहीं है
पिता,
तुम्हें यूँ थमते देख, मन मेरा ठहरता नहीं,
तुम्हारे कदमों की धीमी चाल, दिल ये सहता नहीं।
जो हाथ मेरे बचपन में सहारा बने थे,
आज थरथराते देख, मन ये कहता नहीं।
तुम्हारी आँखों की चमक, जो राह दिखाती थी,
अब धुंधलेपन में खोई, सच को जताती थी।
पर कैसे मान लूँ मैं, कि वक्त तुम्हें हराने चला है,
तुम मेरे लिए वही हो, जो कल तक आसमान था।
जो कहते हैं, "छड़ी ले लो, ये सहारा है,"
मैं कैसे मानूँ, ये वक्त का इशारा है।
तुम जो मुझे कंधों पर घुमाया करते थे,
आज तुम्हें सहारा दूँ, मन से गवारा नहीं।
कहते हैं, "ज्यादा मत चलो, आराम करो,"
कैसे सुनूँ ये शब्द, जब कभी दौड़कर तुमने थामा था।
पिता, तुम बूढ़े हो रहे हो, यह सच है शायद,
पर मेरा दिल तुम्हें वही जवान देखता है।
तुम्हारी बुढ़ापे की आदत मुझे नहीं है,
तुम्हें कमजोर मानने की इजाज़त मुझे नहीं है।
तुम बस चलते रहो, जैसे पहले चलते थे,
मेरे लिए आज भी तुम वही पहले जैसे हो।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी पापा संग 🙏💐 ❤️
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