तुम्हें कमजोर मानने की इजाजत नहीं है
तुम्हें कमजोर मानने की इजाजत नहीं है
पिता,
तुम्हें यूँ थमते देख, मन मेरा ठहरता नहीं,
तुम्हारे कदमों की धीमी चाल, दिल ये सहता नहीं।
जो हाथ मेरे बचपन में सहारा बने थे,
आज थरथराते देख, मन ये कहता नहीं।
तुम्हारी आँखों की चमक, जो राह दिखाती थी,
अब धुंधलेपन में खोई, सच को जताती थी।
पर कैसे मान लूँ मैं, कि वक्त तुम्हें हराने चला है,
तुम मेरे लिए वही हो, जो कल तक आसमान था।
जो कहते हैं, "छड़ी ले लो, ये सहारा है,"
मैं कैसे मानूँ, ये वक्त का इशारा है।
तुम जो मुझे कंधों पर घुमाया करते थे,
आज तुम्हें सहारा दूँ, मन से गवारा नहीं।
कहते हैं, "ज्यादा मत चलो, आराम करो,"
कैसे सुनूँ ये शब्द, जब कभी दौड़कर तुमने थामा था।
पिता, तुम बूढ़े हो रहे हो, यह सच है शायद,
पर मेरा दिल तुम्हें वही जवान देखता है।
तुम्हारी बुढ़ापे की आदत मुझे नहीं है,
तुम्हें कमजोर मानने की इजाज़त मुझे नहीं है।
तुम बस चलते रहो, जैसे पहले चलते थे,
मेरे लिए आज भी तुम वही पहले जैसे हो।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी पापा संग 🙏💐 ❤️
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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