गर्व है मैं शिक्षक हूँ
शिक्षक के दो पहलुओं की कुछ लाइने
गर्व है मैं शिक्षक हूँ
गर्व मुझे
मैं शिक्षक हूँ
बनकर शिक्षा का मैं दीपक
हर कोमल मन में जलती हूँ।
कोमल कोरे मन को मैं
ज्ञान की ऊर्जा से भरती हूँ।
शिक्षा के नए आयाम को
मैं नित ही अपनाती हूँ।
हर शब्द शैली और वाक्य को
कठिन से सरल बनाती हूँ।
समझती हूँ संस्कारों को
संस्कृति को मैं पढ़ती हूँ।
गर्व मुझे
मैं शिक्षक हूँ.....
छोटी हो या हो बड़ी कोई
हर बातों को सुलझाती हूँ।
कोशिश करती हूँ
मैं हर पल....
शिक्षा सहज और सरल बने
बच्चे आनंदित हो पढ़ पाए
सुगम साधन मैं जुटाती हूँ।
नवकोमल मन की छवियों को
सुंदर सुघड़ शिक्षा से मैं सजाती हूँ।
बच्चे शिक्षा से जुड़ पाए
विद्यालय मैं आनंदघर बनाती हूँ।
नव विहान ले नव भविष्य आए
हर आँगन शिक्षित हो जाए।
आँगन के हर मुकुल को
मैं सुंदर पुष्प बनाती हूँ।
मैं रचती हूँ उन्हें
हर रंगों से....
उनको देश का भावी
राष्ट्रनिर्माता बनाती हूँ।
हाँ गर्व मुझे
मैं शिक्षक हूँ....
व्यथा शिक्षक की
मौन हूँ!
कई चिन्हित प्रश्नों पर
क्या कहूँ व्यथा अपनी
मैं शिक्षक तो हूँ
पर अपनी गरिमा को
चिन्हित किए बैठी हूँ।
शिक्षक शिष्य की निर्मल पावन धारा
सदियों से बहती आ रही है।
वात्सल्य माँ के उर
और पिता की छाया सा
बनाकर अपने उपवन को सींचा है।
अपने उपवन का रक्षक बन
सुंदर पुष्प उगाया है।
कोई पुष्प अगर विकृत हो जाए
तो भी....
उसका दोष मेरे सिर माथे आया है।
निस्वार्थ भाव से
कठिन कंटक पथ पर
कोमल पग को चलना बताया
फिर भी जग ने
मेरे पग पर
कई प्रश्नों का कंटक बिछाया है।
संकीर्ण सुविधा में हर दिन
एक नया प्रयोग करती
संकीर्ण व्यवस्था से लड़ती-भिड़ती
शिक्षा के आयाम को सार्थक बनाने का प्रयास करती हूँ।
बदले में हर एक
आँखों में
कहाँ....
अपना स्थान खोज पाती हूँ।
अपनी यह व्यथा मैं खुद ही सुनती हूँ।
बिना पक्षपात के शिक्षा में हर संभव प्रयास करती हूँ।
फिर भी सभी के ह्रदय मे
कहाँ सार्थक गुरु शब्द का सम्मान पाती हूँ।
व्यथा है मेरी
इसे मै रोज सुनती हूँ।
✍️
दीप्ति राय दीपांजलि
शिक्षिका गोरखपुर
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