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चुनाव की नाव

चुनाव की नाव

देखो फिर आ गया मौसमें चुनाव !
फिर लगेगी कर्मचारियों की कतार 
और चल उठेगी... 
भागम-भाग ठेलम-ठेल चुनाव की नाव।
चुनाव की ड्यूटी सबकी लाचारी है।
कोई कह नहीं सकता भैया 
 वह चुनाव पूर्ण कराने में पूर्णतः अनाड़ी है। 
प्रशिक्षण से मतदान तक की प्रक्रिया को 
बड़े ही तन-मन से निभाते हैं।
 हाँ हम कर्मचारी अपने फर्ज में जी जान लगाते हैं।
कड़कती धूप में प्रशिक्षण कर आते हैं।
मतदान कराने के लिए बक्सों,पेटी को उठाते हैं।
 चल पड़ते हैं....
जैसे किसी जंगे मैदान में जा रहे हो,
पसीने से तर-बतर 
फिर भी हम नहीं घबराते हैं। 
सारी पेटी और सामान को उठाकर 
चुनाव स्थल पर पहुँच जाते हैं। 
व्यवस्था के नाम पर मिलती है,
 कुछ टूटी फूटी सी व्यवस्थाएं।
समझ कर सरकारी फरमान 
उसे हम बड़ी ही नरमी से अपनाते हैं।
गुजारा करते हैं रूखी-सूखी जो कुछ मिले उसे खाते हैं। 
आ धमकते हैं फिर प्रधान,बीएलओ और एजेंट बाबू 
कहीं कहीं पर नरम मिजाज से बतियाते हैं
 तो कभी-कभी हमको मतदान के दाव-पेच समझते हैं।
सुनते हैं सबकी क्या करे....
डट जाते हैं अपने कामों पर 
अपने हर दायित्व को निभाते हैं। 
सुबह सवेरे फिर तैयार होकर
 बैठ जाते हैं मतदान कराने,
 चिल्लाती धूप में बढ़ती हुई भीड़ को भी
 देखकर हम मुस्कुराते हैं।
सुबह से शाम तक 
भीड़ की कतार को, 
बड़ी तल्लीनता से हम मतदान कराते हैं।
 पूर्ण करके अपने काम सारे
 फिर अपने आगे के पड़ाव पर जम जाते हैं।
बक्सा पेटी उठाकर चल पड़ता है अपना काफिला.... 
भरी जमघट में कूद पड़ते है।
 पेटी,बक्सों को जमा करने की होड़ में
एक दूजे से भिड़ जाते हैं।
हाय! रे यह चुनाव की नाव!
  चुनाव जब तक पूर्ण ना हो जाए 
तब तक इसकी प्रक्रिया में 
इस किनारे से उस किनारे तक गोते हम लगाते हैं।
मुश्किल है बहुत ही चुनाव की नाव चलाना,
फिर भी इस नाव को हम पार लगाते है।


✍️
दीप्ति राय( दीपांजलि)
कंपोजिट विद्यालय रायगंज 
खोराबार गोरखपुर

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