Breaking News

बचपन


'अविरल' तेरी चांँदनी में,
रही नहीं वो बात।
ना हीं मम्मा लोरी सुनाती,
ना बच्चे खाते दूध और भात।।

आंँगन की किलकारी सिमटी,
कैद हुई गलियारों में।
बचपन का विस्तार घटा,
बीत रहा अंँधियारों में।।

पचपन में बचपन की याद,
तुम्हें क्या बताऊंँ तात!
पूरा घर अपना होता,
सारे लेते हाथों-हाथ।।

बचपन के वो गुल्ली-डंडे,
पेड़ों पर की मस्ती।
ना सजती बगिया झूलों से,
बेसुध पड़ी है बस्ती॥

देहली की रौनक घटी,
द्वार न गिरते खाट।
नहीं रहा वो मिलना-जुलना,
बिसर गई वह ठाट।।

✍️ अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल" ( सoअo)
पू०मा०वि०- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उoप्रo)

कोई टिप्पणी नहीं