मंजिल तेरी दूर नही
मंजिल तेरी दूर नही, बस
बाधाओं को पार करो ।
जीवन में आगे बढ़ना है तो
चुनौती स्वीकार करो ।।
सीखो कच्छप चाल से जो,
अनवरत चलता रहता है ।
खुशबू भरे फूलों से सीखो ,
कांटो में खिलता रहता है ।।
सीखो उन वृक्ष लताओं से,
निःस्वार्थ छाव जो देते हैं ।
सीखो दीपों की बाती से ,
जलकर प्रकाश जो देते हैं ।।
तुम देवदूत प्रकृति के ,
कलुषता का संहार करो ।
मंजिल तेरी दूर नही ,बस
बाधाओं को पार करो ।।
समय सिखाये चलते रहना
लक्ष्य तुम्हे है गर पाना ।
मौसम भाँति जिंदगी है
गर बदले तो ना घबराना ।।
मेहनत कस उड़ते परिंदो से
सीखो वापस घर को आना ।
सूरज ढल कर दिखलाता है
अब नव प्रभात को है आना ।।
गुन गुन करते झरने गाते
जीवन में तुम झंकार भरो ।
मंजिल तेरी दूर नहीं ,बस
बाधाओं को पार करो ।।
बहते रहना नदियों सा
जड़ से सदा जुड़ाव रहे।
एकता ,अखण्डता बनी रहे
अपनों से सदा लगाव रहे ।।
चींटी से सीखो कर्म सदा
जो गिरती फिर से चढ़ती है ।
कलरव सीखो उन चिड़ियों
से जिनसे खुशियां बढ़ती है ।।
सीखो चट्टानों सा डटना
नव ऊर्जा का संचार करो ।
मंजिल तेरी दूर नहीं, बस
बाधाओं को पार करो ।।
दुर्गुण का असर न पड़ने दो
मन में ईर्ष्या का भाव न हो ।
दायित्वों के प्रति सजग रहो
कमकस, कुत्सा का प्रभाव न हो ।।
बचना खटराग कहीं गर हो ,
चरितव्य में कभी कमी ना हो ।
जीवों में श्रेष्ठ, तुम बुद्धिमान
वाणी में अमृत रव भर दो ।
हो अरुण प्रीत मानव मानव से
ऐसा आग़ार भरो ,आजार हरो ।
मंजिल तेरी दूर नही ,बस
बाधाओं को पार करो ।।
जीवन में आगे बढ़ना है तो ,
चुनौती स्वीकार करो ।।
✍ रचनाकार
अरुण कुमार यादव
उ0प्रा0वि0 बरसठी
Mob--9598444853
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